किसी भी समाज की पहचान उसकी कला संस्कृति से : डा भारत भूषण
गोरखपुर
गोरखपुर। किसी भी समाज की पहचान उसकी कला संस्कृति से होती है ऐसे ही पूर्वांचल में रहने वाले निवास करने वाली विभिन्न समुदायों की अपनी लोक संस्कृति लोक परंपरा है यदि हम अपनी लोक कलाओं को लोगों तक पहुंचाने का कार्य नहीं की है धीरे धीरे हम परंपरा से और परंपरा हमसे दूर होती चली जाएगी। भारतीय कला में सिर्फ और सिर्फ लोक मंगल ही है।
उक्त बातें राज्य ललित कला अकादमी के निदेशक डा भारत भूषण ने कही। वह मंगलवार को चित्रगुप्त मंदिर बक्शीपुर के सभागार में दो दिवसीय लोकोत्सव समारोह का उद्घाटन कर रहे थे। विशिष्ट अतिथि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रक्षा अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष हर्ष कुमार सिन्हा ने कहा कि लोक संस्कृति में सिर्फ मंगल ही मंगल है लोक में सामूहिकता होती है। भारतीय लोक कला में जितने प्रतीक हैं जिनका इस्तेमाल इसमें किया गया है वह सभी लोकमंगल की भावना जागृत करती हैं। सिर्फ लोकचित्रों में ही नहीं अपितु लोकगीतों में भी लोकमंगल की भावना विद्यमान है। भारतीय संस्कृति में राम एवं सीता लोगों के आदर्श हैं परंतु लोक में भगवान शिव एवं एवं पार्वती जी को अधिक महत्व मिलती है। पुरवाई ने लोक संस्कृति को बचाने का जो मुहिम शुरू किया है वह अद्वितीय है।
राजकीय बौद्ध संग्रहालय के उपनिदेशक डॉ यशवंत सिंह राठौर ने कहा कि मिर्जापुर की पहाड़ियों में जो भित्ति चित्र मिलते हैं उनमें भी लोकमंगल के प्रतीक मिले हैं उन्हीं पहाड़ियों में मां लक्ष्मी के पैरों का चित्र मिला है। भारतीय सिक्कों पर पीपल के पेड़ या खेत खलिहान के चिन्ह बनाए गए हैं जो हमारे लोकमंगल भावना को प्रदर्शित करते है।
विशिष्ट अतिथि ध्रुव कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय संस्कृति विकास के साथ-साथ अपने रूप बदलते गए। नदियों में सिक्के फेंकने के पीछे कई कारण हुआ करते थे। जब कभी भी इन नदियों से इन सिक्कों को निकाला जाएगा तो उसे आज की पीढ़ी देखकर अपनी परंपरा को समझ सकता है।
इसके पूर्व सभी अतिथियों ने मातृ कला प्रदर्शनी का अवलोकन किया और कैटलाग का विमोचन किया। इस प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश के 32 जनपदों के कलाकारों के चित्र लगाए गए हैं।
इसी क्रम में लोक गीतों की कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें विवाह संस्कार के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों को उनकी बारीकियों को उपस्थित कला साधकों को बताएं क्या इस कार्यशाला का संचालन आकृति विज्ञ ने किया। तथा प्रशिक्षक के रूप में प्रमिला दुबे सुमन श्रीवास्तव थीं। इस सत्र के मुख्य अतिथि प्रगति श्रीवास्तव थी।
समारोह के तृतीय सत्र में लोक चित्रों की कार्यशाला कराई गई जिसमें घरों में बनने वाले कोहबर अल्पना एवं चौक पूरन के महत्व को बताया गया तथा बनाने का तरीका भी समझाया गया।
अंत में चित्रकला की प्रतियोगिता की गई जिसमें शहर के 40 उदयीमान चित्रकारों ने लोक चित्रों का चित्रण किया। अतिथियों का स्वागत पुरवाई कला के महामंत्री प्रेमनाथ ने किया। आभार ज्ञापन अध्यक्ष ममता केतन ने किया तथा समारोह का संचालन रीता श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर राकेश श्रीवास्तव प्रदीप सुविज्ञ विष्णु देव, हृदया त्रिपाठी, अंकिता, अशोक महर्षि, विनीता श्रीवास्तव, विजय श्रीवास्तव, शिवेंद्र पांडे, प्रवीण श्रीवास्तव, अजीत प्रताप सिंह, शैवाल शंकर अमित पटेल आदि पटेल आदि उपस्थित रहे।