सर्वार्थ सिद्धि योग में नागपंचमी संग सोमवार 21 को
गोरखपुर
इस बार सावन का महीना बड़ा ही खास है। अधिक मास के चलते शिव जी का यह प्रिय महीना इस साल 59 का है। इस वजह से सावन में कुल आठ सोमवार भी पड़ रहे हैं। अब तक छह सोमवार बीत चुके हैं और सावन का सातवां सोमवार 21 अगस्त 2023 को है। सातवां सोमवार बड़े ही शुभ योग में है, क्योंकि इस दिन नाग पंचमी भी पड़ रही है। ऐसे में इस दिन पूजा करने से शिव जी के साथ-साथ नाग देवता की भी कृपा प्राप्त होगी। तो चलिए जानते हैं सावन के सातवें सोमवार और नाग पंचमी की पूजा विधि और शुभ मुहुर्त के बारे में…
गोरखपुर। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, नागों की पूजा करने से आध्यात्मिक शक्ति, अपार धन और मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सकती है। हिंदू धर्म में नागों की पूजा के इस पावन पर्व का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान शिव के आभूषण नाग देव की उपासना की जाती है। इस बार नाग पंचमी का त्योहार 21 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। नागपंचमी के दिन सोमवार होने से भगवान भोलेनाथ और नाग देवता का एक साथ आशीर्वाद मिलेगा। इसके साथ ही इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का भी शुभ संयोग बन रहा है, जो कुछ राशियों के लिए बेहद लकी रहने वाला है। सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, इस दिन नाग देवता के पूजन का विधान है।
आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र ने बताया कि सूर्योदय 6 बजकर 36 मिनट और शुक्ल पंचमी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन और रात को 9 बजकर 54 मिनट तक। इस दिन चित्रा नक्षत्र भी सम्पूर्ण दिन और रात्रि शेष 3 बजकर 47 मिनट तक। इस दिन शुभ योग है। चन्द्रमा की स्थिति कन्या और तुला दोनों राशियों पर रहेगा। सूर्योदय के समय बुधादित्य योग बन रहा है। नाग पंचमी को सोमवार है। इस वजह से इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाएगा। नागपंचमी के दिन भगवान भोलेनाथ और नाग देवता का एक साथ आशीर्वाद मिलेगा। इसके साथ ही नागपंचमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी शुभ संयोग बन रहा है। 21 अगस्त 2023 को सावन का सातवां सोमवार है। इसी दिन नाग पंचमी भी मनाई जाएगी और नाग पंचमी पर शिव जी के गण नाग देवता की पूजा की जाती है। इस पावन पर्व पर महिलाएं नाग देवता की पूजा करती हैं और सांपों को दूध अर्पित करती हैं। इस दिन स्त्रियां अपने भाइयों तथा परिवार की सुरक्षा के लिये प्रार्थना भी करती हैं।
श्रावण के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार नागों को समर्पित है। इस त्योहार पर व्रत पूर्वक नागों का अर्चन पूजन होता है। वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना गया है। नागों का मूल स्थान पाताल लोक प्रसिद्ध है। पुराणों में ही नाग लोक की राजधानी के रूप में भोगवती पुरी विख्यात है। संस्कृत कथा साहित्य में विशेष रूप से कथा सरित्सागर नाग लोक और वहां के निवासियों की कथाओं से ओतप्रोत है।
आचार्य पंडित मिश्र ने बताया कि गरुड़ पुराण, भविष्य पुराण, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश आदि ग्रंथों में नाग संबंधी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में यक्ष, किन्नर और गंधर्वो के वर्णन के साथ नागों का भी वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शैय्या की शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेश जी के अलंकरण में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। योग सिद्धि के लिए जो कुंडलिनी शक्ति जागृत की जाती है उसको सर्पिणी कहा जाता है। पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नामों का उल्लेख मिलता है, जो कमश: प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक बनते हैं। इस प्रकार अन्य देवताओं ने भी नागों को धारण किया है। नाग देवता भारतीय संस्कृति देव रूप में स्वीकार किए गए हैं।
पंडित मिश्र ने बताया कि हमारे धर्मग्रंथों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है।व्रत के साथ एक समय भोजन करने का विधान है पूजा में पृथ्वी पर या दीवारों पर नागों का चिह्न अंकित किया जाता है। स्वर्ण,रजत,काष्ठ या मृतिका से नाग बनाकर पुष्प,धूप,दीप एवं विविध नैवेद्यों से नागों का पूजन होता है। उसमें एक प्रार्थना की जाती है जिसका भाव इस प्रकार है –” जो नाग पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवरों,वापी,कूप या तालाब आदि में निवास करते हैं,वे सब हम पर प्रसन्न हो,हम उनको बार बार नमस्कार करते हैं।– नागों की अनेक जातियां और उपजातियां हैं। भविष्य पुराण में नागों के लक्षण, नाम, स्वरुप एवं जातियों का विस्तार से वर्णन है।मणिधारी और इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख मिलता है।
उन्होंने बताया कि कश्मीर के जाने-माने संस्कृत कवि कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक राज तरंगिणी में कश्मीर की संपूर्ण भूमि को नागों का अवदान माना है। वहां के प्रसिद्ध नगर अनंतनाग का नामकरण इसका ऐतिहासिक प्रमाण है। देश के पर्वतीय प्रदेशों में नाग पूजा बहुतायत से होती है। वहां नाग देवता अत्यंत पूज्य माने जाते हैं। हमारे देश के प्रत्येक ग्राम- नगर में ग्राम देवता और लोक देवता के रूप में नाग देवताओं का पूजा स्थल है। भारतीय संस्कृति में प्रातः सायं भगवत स्मरण में भगवत स्मरण के साथ-साथ अनंत तथा वासुकी आदि पवित्र नागों का नाम स्मरण भी किया जाता है। इसमें नागविष और उनके भय से रक्षा होती है, यथा सर्वत्र विजय मिलती है-
- अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
- शखपालं धार्तराष्टं तक्षकं कालियं तथा।।
- एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
- सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।
- तस्मै बिषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
देवी भागवत में प्रमुख नागों का निर्माण किया गया है हमारे ऋषि-मुनियों ने नागो वासना में आने का व्रत पूजन का विधान किया है श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागों को अत्यंत आनंद देने वाली है। नागा नामानंदकरी। हमारे ऋषि मुनियों ने नागोपासना में अनेक व्रत पूजन का विधान बताया है। पंचमी तिथि को नाग-पूजन में उनको गो दुग्ध से स्नान कराने का विधान है।
पूजन विधि
नाग पंचमी वाले दिन अनन्त, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल नामक देव नागों की पूजा की जाती है।
ऐसे में इस दिन घर के दरवाजे पर सांप की आठ आकृति बनाएं।
फिर हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नागदेवता की पूजा करें।
मिष्ठान का भोग लगाकर नाग देवता की कथा अवश्य पढ़ें।
पूजा करने के बाद कच्चा दूध में घी, चीनी मिलाकर उसे लकड़ी पर रखें गए सांप को अर्पित करें।
शुभ मुहुर्त
सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।
शिव जी और नाग देवता की पूजा का मुहुर्त– सुबह 05 बजकर 36 मिनट से सुबह 07 बजकर 35 मिनट तक
उत्तम मुहुर्त- सुबह 09 बजकर 35 मिनट से सुबह 11 बजकर 03 मिनट तक इस दिन शुभ योग है।