हर्षोल्लास के साथ मना डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मोत्सव
गोरखपुर
गोरखपुर। महाराणा प्रताप महिला पी.जी. कॉलेज रामदत्तपुर में राष्ट्रीय सेवा योजना के तत्वावधान में आज दिनांक 5 सितंबर को प्रख्यात शिक्षाविद् भारतीय संस्कृति के संवाहक सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस बड़े ही उल्लास पूर्वक मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन करने के उपरांत किया गया। इसके पश्चात् छात्राओं ने समवेत स्वर में मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम के इसी क्रम में छात्राओं ने समस्त शिक्षकगण को तिलक लगाकर उनका स्वागत एवं आशीर्वाद प्राप्त किया।
छात्राओं को संबोधित करते हुए समाजशास्त्र की प्रवक्ता डॉ. मांगलिका त्रिपाठी ने छात्राओं को संबोधित करते हुए बताया कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा जगत के प्रणेता माने जाते हैं। इनका जन्म सन 1888 को मद्रास के चित्तूर जिले के तिरुतनि ग्राम के तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम विरासमियाह तथा माता का नाम सिताम्मा था। इनके पिता धार्मिक विचारों वाले एक प्रकांड पंडित थे फिर भी उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिस्चियन मिशनरी संस्था में शिक्षा दीक्षा दिलाई। राधाकृष्णन स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते थे। सन् 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया एवं सन् 1961 में जर्मन बुक ट्रेड के शांति पुरस्कार से नवाजा गया। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने विद्यार्थियों के लिए बहुत ही प्रेरणा प्रद विचार रखें। उनका मानना था कि ” शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि शिक्षक वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।”
इस अवसर पर महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ.सीमा श्रीवास्तव ने कहा कि प्रथम उपराष्ट्रपति एवं भारत के दूसरे राष्ट्रपति पद को सुशोभित करने वाले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक शिक्षक, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, दूरदर्शी और समाज सुधारक थे। इनके जन्म दिवस को ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इनका विचार था कि शिक्षा पूर्ण होने के लिए मानवीय होना आवश्यक है, जिसके लिए हृदय का शोधन और आत्मानुशासन सम्मिलित होना चाहिए। इन्होंने भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को गहराई से समझा और कहा कि भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों का आदर करना और समता का भाव अपनाना निहित है। व्यक्ति को सुख-दुख में समान भाव से रहना चाहिए, क्योंकि सच्चा ज्ञान वही है जो आपके अंदर के अज्ञान को समाप्त कर सादगीपूर्ण एवं संतोष के साथ जीना सीखाए।पुस्तकें वह माध्यम हैं, जिनके द्वारा हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।
कार्यक्रम का संचालन काशिफा शेफ बीकॉम तृतीय सेमेस्टर एवं आभार ज्ञापन खुर्शीदा खातून बी.कॉम तृतीय सेमेस्टर ने किया।
इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त प्रवक्तागण एवं छात्राएं उपस्थित रहीं।