कुष्ठ से हुई दिव्यांगता का प्रबन्धन कर दूसरों के भी मददगार बने जयप्रकाश

गोरखपुर

सक्रिय कुष्ठ रोगी खोजी अभियान (01 से 30 सितम्बर) में विशेष

समय से पहचान न हो पाने के कारण टेढ़ी हो गयीं थी अंगुलियां

गोरखपुर। शरीर के किसी भी हिस्से में अगर कोई सुन्न दाग धब्बा हो जिसका रंग चमड़ी के रंग से हल्का हो तो वह कुष्ठ हो सकता है। इसकी समय से पहचान कर सम्पूर्ण इलाज संभव है, लेकिन इलाज में देरी दिव्यांगता का कारक बन जाती है । गोरखपुर शहर से सटे जंगल धूषण निवासी जयप्रकाश (23) के साथ यही हुआ, हांलाकि जयप्रकाश ने दिव्यांगता होने के बाद इसका सही प्रबंधन कर लिया और हालात बदतर होने से बच गये । उनकी अंगुलियां टेढ़ी हो गयी थीं जिनकी विभाग के मदद से सर्जरी हुई और उन्हें विभागीय योजनाओं का भी लाभ मिला। अब जयप्रकाश दूसरे दिव्यांग कुष्ठ रोगियों के मददगार बन चुके हैं।

जयप्रकाश बताते हैं कि उन्हें दिक्कत वर्ष 2004 से ही थी । उनकी दाहिने हाथ की अंगुलियों में सुन्नपन था जिसे वह सामान्य समस्या समझते रहे । करीब तीन वर्ष बीत गये लेकिन उन्होंने किसी चिकित्सक को नहीं दिखाया । वर्ष 2007 आते आते उनकी अंगुलियां टेढ़ी होने लगीं। गांव की आशा कार्यकर्ता सुनीता देवी को जयप्रकाश ने अपनी समस्या बताई । सुनीता उन्हें लेकर चरगांवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचीं। वहां पर तत्कालीन नान मेडिकल सुपरवाइजर मधई सिंह के सहयोग से कुष्ठ की जांच कराई गई और पाया गया कि जयप्रकाश कुष्ठ की वजह से दिव्यांगता का शिकार हो चुके थे।

जयप्रकाश ने बताया कि चरगांवा पीएचसी से ही उनकी दवाएं शुरू की गयीं और उन्हें बताया कि सरकारी प्रावधानों के तहत उनकी अंगुलियों की सर्जरी भी हो जाएगी । वर्ष 2009 में जिले से बाहर भेज कर उनकी अंगुलियों की सर्जरी कराई गई । इस दौरान रहने और खाने की सुविधा के साथ साथ 5000 रुपये भी उन्हें मिले । वर्ष 2008 में ही उनकी दिव्यांगता का प्रमाण पत्र भी बन गया जिस पर इस समय वह 3000 रुपये प्रति माह पेंशन पा रहे हैं । वह गन्ने की जूस की दुकान चलाते हैं और घर में पत्नी के साथ एक बच्चा भी है, जिनके साथ सम्मानपूर्वक जीवन जी रहे हैं।

वह बताते हैं कि कुष्ठ के कारण उन्हें कई बार भेदभाव की दुर्भावना का शिकार भी होना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जब चरगांवा ब्लॉक में दिव्यांग कुष्ठ रोगियों के प्रिवेंशन ऑफ डिसेबिलिटी कैम्प में उनसे सहयोग करने के लिए कहा गया तो उन्हें यह प्रस्ताव काफी अच्छा लगा । उन्हें महसूस हुआ कि शायद दूसरों का दर्द बांटने से उनका मन भी हल्का होगा । इस तरह नान मेडिकल असिस्टेंट विनय कुमार श्रीवास्तव के सुझाव पर उन्होंने अपने जैसे दिव्यांग कुष्ठ रोगियों की मदद करने का बीड़ा उठाया । जब भी कैम्प का आयोजन होता है वह सभी दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को सूचना दे देते हैं। बीच बीच में भी वह फोन से उनका हालचाल लेते रहते हैं।

ऐसे ही एक 50 वर्षीय दिव्यांग कुष्ठ रोगी ने बताया कि उन्हें 35 साल से यह बीमारी है। जयप्रकाश की मदद से उन्हें प्रत्येक कैम्प के आयोजन की जानकारी मिल जाती है। कैम्प में बताया जाता है कि कुष्ठ प्रभावित अंग की सही देखभाल कर सुरक्षित जीवन जी सकते हैं । कैम्प में ही दो बार एमसीआर चप्पल भी मिला है। प्रति माह 3000 रुपये की पेंशन मिल रही है । कैम्प में आने से उनका मनोबल बढ़ा है और उन्हें लगता है कि वह अकेले नहीं हैं । समाज में उनके जैसे और भी लोग हैं जो कुष्ठ के साथ सामान्य जीवन जी रहे हैं।

476 दिव्यांग कुष्ठ रोगी

जिला कुष्ठ निवारण अधिकारी डॉ गणेश यादव ने बताया कि जिले में मार्च 2023 तक 476 दिव्यांग कुष्ठ रोगी चिन्हित किये गये थे, जिनमें से 240 को दिव्यांगता का सर्टिफिकेट जारी करवाया जा चुका है। करीब 196 दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को पेंशन की सुविधा भी मिल रही है । करीब 100 मरीज ऐसे हैं जिन्हें साल में दो बार एमसीआर चप्पल दिया जाता है । गंभीर घाव वाले 50 मरीजों को सेल्फ केयर किट दिया जाता है । करीब आधा दर्जन मरीजों को फिंगर स्पीलिंट भी दी गयी है। वर्ष 2017 से 2023 तक 19 दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को सर्जरी की सुविधा दी गयी है।

 

खोजे जा रहे मरीज

डॉ यादव ने बताया कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे के दिशा निर्देशन में नये कुष्ठ रोगियों को ढूंढ कर इलाज कराया जा रहा है। समय से कुष्ठ की पहचान हो जाने से दिव्यांगता की स्थिति ही नहीं आती है । जिले में आशा और पुरूष कार्यकर्ता की टीम इस समय नये मरीजों को ढूंढ रही है । जिन्हें भी कुष्ठ की आशंका हो वह आगे आकर जांच करवाएं और कुष्ठ निवारण में मददगार बनें।

Related Articles