जीवनपर्यंत छात्र को शिक्षा की ओर प्रेरित करता है शिक्षक : प्रो शैलजा सिंह

गोरखपुर

गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि- गढ़ि काढ़ै खोट।

अन्तर हाथ सहार दै,बाहर बाहै चोट।।

 छात्र -शिक्षक के बीच आवश्यक है- संप्रेषण, लचीलापन एवं अनुशासन

 

गोरखपुर। युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज एवं राष्ट्र संत महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की पावन पुण्य स्मृति में आयोजित सप्त दिवसीय व्याख्यान माला के तृतीय दिवस में “छात्रों के सशक्तिकरण में अध्यापक की भूमिका” विषय पर महाराणा प्रताप रामदत्तपुर परिसर में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर शैलजा सिंह पूर्व अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता शिक्षा शास्त्र विभाग दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर ने छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि बालक सामाजिक प्राणी है इसलिए सामाजिक जागरूकता उसे सीखनी होती है बालक ज्ञान से भरा है, विवेक बुद्धि वाला है ,वह स्वयं जानता है उसे क्या ग्रहण करना है परंतु शिक्षक उसमें राष्ट्रीयता, नैतिकता एवं व्यक्तित्व निर्माण की भावना जागृत कर उसे जीवन पर्यंत एक अच्छा राष्ट्र नायक और सशक्त नागरिक बनना सिखाता है। एक शिक्षक छात्र के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है, जिनके पदचिन्हों पर चलना प्रत्येक छात्र चाहता है क्योंकि शिक्षक को वह अपना आइडियल मानता है। शिक्षक के द्वारा बताई गई बातें उसके लिए अनुकरण का माध्यम है, जिससे वह स्वयं बेहतर बन जाने का स्वप्न भी देखता है। प्रत्येक शिक्षक अपने क्लास का लीडर होता है और प्रिंसिपल उस पूरे स्कूल का लीडर होता है, इसलिए शिक्षक को स्वयं में भी अनुशासित, आत्मानुभूति से परिपूर्ण होना चाहिए। एक अच्छा वक्ता बनने के लिए आपको एक अच्छा श्रोता भी बनना होगा। छात्र के जीवन में शिक्षक की भूमिका बहुत प्रबल होती है क्योंकि वह विद्यार्थी को तनाव मुक्त करके उसका मार्ग सुलभ बनाता है। प्रत्येक बच्चा फूल की तरह होता है जिसे शिक्षक को किसी भी हालत में कुम्हलाने नहीं देना चाहिए। शिक्षक और छात्र संबंध अनमोल होता है। शिक्षक हमेशा छात्र को ऐसे मार्ग की प्रेरणा देता है जिससे वह अच्छे और बुरे की पहचान कर सके। एक शिक्षक प्रोग्रामर का काम करता है। छात्र और शिक्षक के बीच संप्रेषण, लचीलापन, एवं अनुशासन का होना अति आवश्यक है। शिक्षक छात्र के रुचि -अरुचि का ध्यान रखते हुए उसे सही दिशा की ओर प्रेरित करता है। पुनः उन्होंने कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे “गुरु कुमार शिष्य कुंभ है… को विस्तारित करते हुए बताया कि शिक्षक एक कुम्हार की भांति शिष्य को प्रतिपल गढ़ने का कार्य करता है। एक अभिभावक की भूमिका में शिक्षक सदैव उसके भविष्य का ध्यान रखता है।

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रतिदिन की भांति मां सरस्वती एव महंत द्वय के पूजन अर्चन एवं छात्राओं द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना व श्रद्धांजलि गीत गाकर किया गया। मुख्य अतिथि का स्वागत महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सीमा श्रीवास्तव द्वारा स्मृति ग्रंथ भेंट कर किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राजकुमार एवं आभार ज्ञापन डॉ. अनुभा मिश्रा द्वारा किया गया। इस अवसर पर विद्यालय/ महाविद्यालय के समस्त शिक्षकगण, प्रवक्तागण एवं छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।

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