“सर्वे भवंतु सुखिन: “संतों का मूल मंत्र : प्रो. उदय प्रताप सिंह
गोरखपुर
भारतीय संस्कृति के पोषक थे महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज : प्रोफेसर शोभा गौड़
गोरखपुर। महाराणा प्रताप कन्या इंटर कॉलेज एवं महाराणा प्रताप महिला पीजी कॉलेज परिसर में युग पुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ एवं राष्ट्र संत महंत अवेद्यनाथ की पावन पुण्य स्मृति में आयोजित सप्त दिवसीय व्याख्यान माला के षष्ठम दिवस में “हिंदुत्व के अग्रदूत ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ” विषय पर मुख्य वक्ता, प्रो. शोभा गौड़ ने सारगर्भित व्याख्यान देते हुए कहा की श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है तब तब मैं पृथ्वी पर जन्म लेता हूं। ठीक उसी प्रकार जब सामाजिक विकृतिया बढ़ती हैं, संस्कृति की हानि होती है और सामाजिक परंपराओं को दूषित किया जाता है ऐसे समय में राष्ट्र के उत्थान के लिए एवं भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए किसी महापुरुष का अवतार होता है। दोनों महान संतों में भूत, वर्तमान एवं भविष्य को देखने की अद्भुत क्षमता थी। वह भारतीय संस्कृति के संवाहक, रूढ़िवादिता के विरोधी एवं राजनीतिक प्रतिभा के धनी थे।
उन्होंने कहा कि विलक्षण व्यक्ति की प्रतिभा का ज्ञान बचपन में ही हो जाता है। वह बड़े ही निर्भीक, अनुशासन प्रिय कार्य कुशलता के गुणों से भरे हुए एवं क्रीड़ा प्रेमी थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था वह योगी गंभीरनाथ के चरणों में बैठकर हिंदी संस्कृति के मूल को आत्मसात किया। हिंदू राष्ट्रवाद की बड़ी ही उदारवादी, मानवतावादी एवं विकासवादी विचारधारा है। सनातन धर्म लोकतांत्रिक है यह शाश्वत है इसका ना कोई आदि है ना कोई अंत है। संत के रूप में उन्होंने मोक्ष के लिए नहीं लोक कल्याण के लिए कार्य किया है। शिक्षा के प्रांत में वे एक अग्रदूत के रूप में जाने जाते है। शिक्षा का जो बीज उन्होंने बोया है वह महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के वटवृक्ष के रूप में बनकर खड़ा है। शिक्षा परिषद में उनकी आत्मा बसती है यही कारण है कि हम सभी इसकी सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उन्होंने गुरु- शिष्य परंपरा का निर्वहन किया जो आज योगी आदित्यनाथ जी महाराज तक चलती चली आ रही है।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में अध्यक्षता कर रहे प्रो. उदय प्रताप सिंह जी ने द्वय महंतों के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने न केवल देश को अपनी शिक्षा संस्कृति से पल्लवित किया वरन अपना पूरा जीवन इसी साधना में व्यतीत कर दिया। उन्होंने जीवन के चार सूत्रों की चर्चा करते हुए कहा कि विश्व एक परिवार है, यह सत्य है कि सारे धर्म अंत में एक साथ मिल जाते हैं, सर्व धर्म समभाव हो जिससे संघर्ष की संभावना ही न रहे और सर्वे भवंतु सुखिन : सर्वे संतु निरामया का मंत्र देते हुए छात्र-छात्राओं को प्रेरित किया।
उन्होंने बताया की शिक्षा सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक के तीन आयामों पर टिकी हुई है।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती एवं महंत द्वय के पूजन-अर्चन के पश्चात् छात्राओं द्वारा दीप गीत एवं मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत करके की गई। कार्यक्रम की श्रृंखला में छात्राओं द्वारा श्रद्धांजलि गीत गाया गया। मुख्य अतिथि एवम अध्यक्षा का स्वागत महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सीमा श्रीवास्तव के द्वारा स्मृति ग्रंथ भेट कर के किया गया। संचालन सुशांत दुबे एवं आभार ज्ञापन राजकुमार ने किया।
इस अवसर पर विद्यालय, महाविद्यालय परिवार के समस्त शिक्षकगण, प्रवक्तागण एवं छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।