अखंड सौभाग्य के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत, किया गौरी-शिव की आराधना
गोरखपुर
पति के दीर्घायु की कामना के साथ अखंड सुहाग का वर मांगा
शिव-गौरी से सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य रक्षा व दीर्घायु की आराधना की
गोरखपुर। हरितालिका तीज पर्व पर सुहागिनों ने सोमवार को विधि विधान से भगवान शिव व पार्वती की आराधना किया। अखंड सुहाग के लिए निर्जला व्रत अनुष्ठान करके पति के दीर्घायु की कामना की व सौभाग्य के लिए कथा श्रवण किया। इसके पश्चात शाम को संपूर्ण श्रृंगार से सुसज्जित होकर पूजन कर दान-पुण्य किया।
भाद्रपद की शुक्ल तृतीया पर सौभाग्यवती स्त्रियों ने निर्जल व्रत रखकर गौरी-शिव का व्रत पूजन किया। दिन भर विभिन्न तैयारियां पूरी करते हुए व्रत रखा। शाम को पूजन सामग्री के साथ साड़ी व श्रृंगार प्रसाधन की वस्तुओं को रखकर धूप, दीप, अगरबत्ती, फल-फूल, दही, पान, अक्षत, मिठाई, वस्त्र रखकर पूजा किया। पति के दीर्घायु की कामना के साथ अखंड सुहाग का वर मांगा कर सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य रक्षा व दीर्घायु की प्रार्थना की। हरितालिका तीज को हस्त-नक्षत्र में सौभाग्यवती स्त्रियों ने मेंहदी रचाने के साथ सोलह श्रृंगार किया। अनेक महिलाओं ने नए लाल वस्त्र पहनकर पूजन किया। देर शाम अक्षत आदि छूने व दान करने के बाद जल ग्रहण किया।महादेव झारखंडी, मुक्तेश्वरनाथ, मानसरोवर शिव मंदिर, गोरखनाथ मंदिर स्थित शिव मंदिर, सूर्यकुण्ड धाम स्थित शिव मंदिर आदि स्थानों पर व्रती महिलाओं ने पूजा अर्चना कर पुरोहितों द्वारा कथा सुनी।
तीज उपहार से खुशियों का सौगात
तीज उपहार से खुशियां की ससुराल से आने वाले उपहार को लेकर पूरा उत्साह बना रहा। सुहाग की सामग्री के साथ, साड़ी, कपड़ा, सहित बच्चों के वस्त्र आदि को लेकर परिवार जनों में उत्साह रहा। मायके व ससुराल से एक दूसरे पक्ष के लोगों महिलाओं के लिए विभिन्न उपहार, मिष्ठान आदि भेजा। जिन घरों हाल में ही शादियां हुई है वहां विधिवत रस्म अदायगी करके पास-पड़ोस में मिठाई बांटी गई।
पर्व का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की। पुरोहितों से हरितालिका तीज की कथा सुनी। मां को सुहाग समस्त सामग्री अर्पित किया। ऐसा मानना है कि जो सभी पापों और सांसारिक तापों को हरने वाले व्रत को प विधिपूर्वक करता है, उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं।
कथानुसार इस पावन व्रत को सबसे पहले राजा हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था और उनके तप और आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने माता को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
कुछ स्थानों पर कुंवारी लड़कियों द्वारा योग्य वर के लिए पूजन-अर्चन व व्रत रखने की परंपरा है। पारण को लेकर उहापोह तृतीय एक दिन पूर्व लगने व उदया तिथि पर सोमवार को व्रत रखा गया। ऐसे में पारण को लेकर उहापोह की स्थिति बनी रही। अनेकों महिलाओं ने शाम को श्रृंगार, फल आदि का दान किया।