देश व धर्म के लिए समर्पित होता है संत का जीवन : योगी आदित्यनाथ
गोरखपुर
युगपुरुष ब्राह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 54 वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 9 वीं पुण्यतिथि श्रद्धांजलि सभा में गोरक्षपीठाधीश्वर परमपूज्य महंत योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा-
एक संत का जीवन अपना व्यक्तिगत जीवन नहीं होता। वह देश व धर्म के लिए समर्पित होता है। देश और समाज की आवश्यकता क्या है वही संत की प्राथमिकता है। महंत दिग्विजयनाथ जी ने अपने समय की चुनौतियों के लिए संघर्ष किया। राजस्थान के मेवाड़ के उस कुल से उनका संबंध है जिस राणा कुल ने देश के स्वाभिमान के लिए लड़ते हुए अपना जीवन मातृभूमि को समर्पित कर दिया । उन्होंने यहां पर अनेक धार्मिक राजनीतिक अनुष्ठानों से जुड़कर कर समाज के लिए कुछ नया करने का प्रयास किया। हमारे ऋषि मुनियों के आश्रमों में विज्ञान के शोध होते थे इसलिए राक्षस गण उस पर आक्रमण करते थे। महंत दिग्विजय जी ने गोरक्षपीठ से जुड़कर सबसे पहले शिक्षा पर जोर देते हुए महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। एक युवा संत के हृदय में युवा पीढ़ी राष्ट्रभावना से ओत प्रोत हो इसके लिए उन्होंने अपने संस्थानों का विस्तार किया। उनके द्वारा स्थापित शिक्षा परिषद दो विश्वविद्यालय की स्थापना करने के साथ ही चार दर्जन शिक्षण प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करके राष्ट्र व समाज से जुड़े ज्वलंत चुनौतियों के लिए युवा पीढ़ी को तैयार करने का काम कर रहे है। यह एक नया भारत है।
इसमें नेतृत्व का ही नहीं, हम सभी का दायित्व है कि हमें देश के नेतृत्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। इसके लिए हमें शिक्षा पर ध्यान देना होगा । राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसके लिए एक संकल्प पत्र है । इसके आधार पर हम देश के साथ-साथ अपने जीवन के सपनों को साकार कर सकते हैं। महंत दिग्विजयनाथ जी ने न केवल शिक्षा में ही अपितु राजनीति के साथ आकर राष्ट्र के अभियान से जुड़े साथ ही बिखरे हुए नाथ योगियो को संगठित करने के लिए योगी महासभा का गठन किया। देश के उत्थान के लिए उन हर सभी आंदोलन से जुड़कर उन्होंने कार्य किया जिनके द्वारा समाज व राष्ट्र नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर रही हो। अपने पूर्वजों के लिए हम भारतीय पूरे 15 दिन कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। इसलिए हमसे अच्छा अपने महापुरुषों के प्रति भाव को कौन समझ सकता है । हम उनके मूल्यों व आदर्शो पर चलते हुए उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जगद्गुरु रामानंदाचार्य डॉ राजकमल दास वेदांती जी महाराज ने राम जन्मभूमि आंदोलन से संबंधित महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के स्मृतियों को सझा करते हुए कहा कि यह दोनों महापुरुष एक योग्य गुरु थे ये योग्य शिष्यों को पहचान लेते थे। किस व्यक्ति में योग्यता वे देखते ही पहचान लेते थे। मैं दोनों महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। अयोध्या से पधारे महंत कमलनयन दास जी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी व ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी ने रामजन्म भूमि तथा हिंदुत्व के लिए आगे आकर नेतृत्व किया। आज उनके संकल्प तथा तपस्या के फल स्वरुप आज श्रीराम जी का भव्य मंदिर बन रहा है। यह उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है।
जूनागढ़ गुजरात से पधारे महंत शेरनाथ बापू ने कहा कि पूज्य महंतद्वय ने शिक्षा तथा चिकित्सा के माध्यम से समाज को अदभुत योगदान दिया। मैं योगी महासभा की तरफ से पूज्य दोनों ब्रह्मलीन महापुरुषो को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
जबलपुर से पधारे महंत नरसिंह दास ने कहा कि जिस दिन राजसत्ता के शिखर पर धर्म सत्ता बैठेगी उसीदिन भारत विश्व गुरु बनजाएगा। ब्रह्मलीन युगपुरुष महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी ने राष्ट्र को उन्नत करने के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य सहित सभी आयामों पर कार्य किया है, जिस प्रकार सागर में स्नान करने से सभी तीर्थ का फल मिलता है उसी प्रकार से पूज्य संत जन का दर्शन करने से सभी तीर्थ का फल मिलता है। मैं पूज्य दोनों महाराज श्री के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
गाजियाबाद से पधारे स्वामी नारायण गिरी ने कहा कि पूज्य दिग्विजयनाथ जी महाराज ने शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाई और पूज्य अवेद्यनाथ जी ने सामाजिक समरसता के साथ हिंदू जागरण के लिए प्रयास करते रहे। आज योगी आदित्यनाथ जी के रूप में पूज्य दिग्विजयनाथ जी का दर्शन होता है जो कि उनके सपनों को साकार कर रहे हैं।
अयोध्या से पधारे जगतगुरु स्वामी श्री दिनेशाचार्य ने कहा कि गुरु की महिमा का वर्णन करना कठिन होता है। मां अपनी गोद में बैठाती है पिता कंधों पर बैठता है किंतु गुरु सर्वप्रथम अपने शिष्य को स्वयं के पैरों पर खड़ा होना सिखाता है। मैं दोनों महापुरुषों के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो उदय प्रताप सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की यात्रा 1932 से प्रारंभ हुई। धीरे-धीरे हम आगे बढ़ते गए आज लगभग पांच दर्जन संस्थाएं हो गई हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न आयामों से संबंधित है। इन 91 वर्षों में परिषद द्वारा दो विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना में हमारा सहयोग है। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी ने मैकाले की शिक्षा नीति से लड़ाई लड़ने के लिए इसकी स्थापना की, बाद में वामपंथी विचारधारा से भी शिक्षा परिषद ने लड़ाई लड़ी। आज हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आदर्श रूप में लागू करने के लिए प्रयासरत है। राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने इस शिक्षा परिषद को अपेक्षाओं के अनुरुप पुष्पित व पल्लवित किया। आज इस अवसर पर मैं उन दोनों महापुरुषों के चरणों में अपनी व शिक्षा परिषद की तरफ से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल अतुल वाजपेई ने कहा कि शिक्षा परिषद के द्वारा स्थापित महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय अपने स्थापना दिवस से लेकर नित नई सफलता को प्राप्त कर रहा है। मात्र 2 वर्षों में संस्था ने चिकित्सालय के साथ ही कई नए पाठ्यक्रम प्रारंभ किया है।
गुरु श्री गोरखनाथ चिकित्सालय गोरखनाथ के निदेशक ब्रिगेडियर डॉ दीपचंद ठाकुर ने कहा कि ब्रह्मलीन महंतद्वय के ऊपर बोलना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। गुलाम भारत में शिक्षा को लेकर क्रांतिलाई जिसमें आज शिक्षा एवं चिकित्सा से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में संस्थाएं कार्य कर रहे हैं।
महाराणा प्रताप बालिका इंटर कॉलेज सिविल लाइंस गोरखपुर के छात्राओं ने सरस्वती वंदना तथा श्रद्धांजलि गीत प्रस्तुत किया। वैदिक मंगलाचरण डॉ अश्वनी त्रिपाठी, गोरक्ष अष्टक पाठ गौरव तिवारी व आदित्य पांडे, दिग्विजय स्त्रोत पाठ डॉ अभिषेक पांडे तथा संचालन माधवेंद्र राज ने किया।