मृत्यु की तिथि मालूम न हो तो अमावस्या पर करें धूप-ध्यान
गोरखपुर
पितृपक्ष अमावस्या 14 अक्टूबर को : मृत सदस्य की संतान न हो तो रिश्तेदार कर सकते हैं श्राद्ध
पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करने का महापर्व पितृपक्ष 14 अक्टूबर (सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या) तक चलेगा। पितृ पक्ष में श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण और धूप-ध्यान आदि धर्म-कर्म संतान द्वारा किए जाते हैं, लेकिन अगर किसी मृत सदस्य की संतान न हो तो उसके रिश्तेदार श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
आचार्य पंडित राम कैलाश चौबे के मुताबिक, पितृपक्ष में हमें अपने घर-परिवार के मृत सदस्यों का मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म करना चाहिए, ऐसा करने से पितृ ऋण उतरता है।
पितृपक्ष से जुड़ी खास बातें…
- शास्त्रों में तीन तरह के ऋण बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। पूजा-पाठ करने से देव ऋण उतरता है। दान-पुण्य करने से ऋषि ऋण उतरता है और श्राद्ध कर्म करने से पितृ ऋण उतरता है।
- पितृ पक्ष में मृत गुरु, सास-ससुर, ताऊ, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, शिष्य, दामाद, भानजा, फूफा, मौसा, पुत्र, मित्र का भी श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध इनकी मृत्यु तिथि पर करना चाहिए। अगर किसी की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या (14 अक्टूबर) पर श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
- माता-पिता और घर के बड़े-बुजुर्ग अपने बच्चों के सुखी जीवन के लिए अपने सुख का त्याग करते हैं। संतानों का भी कर्तव्य होता है कि वे भी बड़ों के सुख का ध्यान रखें। घर के लोगों की मृत्यु के बाद उनके लिए श्राद्ध कर्म करना संतान का कर्तव्य है। घर-परिवार के मृत सदस्य को ही पितर देवता माना जाता है। इनके लिए श्राद्ध और दान-पुण्य जरूर करना चाहिए।
- किसी मृत व्यक्ति की संतान भी न हो तो उसके रिश्तेदारों को श्राद्ध कर्म करना चाहिए। अगर किसी मृत व्यक्ति के एक से ज्यादा पुत्र हैं और सभी एक साथ ही रहते हैं तो सबसे बड़े बेटे को श्राद्ध करना चाहिए। अगर बच्चे अलग-अलग रहते हैं तो सभी अपने-अपने घर में अलग-अलग धूप-ध्यान कर सकते हैं।
- मृत व्यक्ति का कोई पुत्र न हो तो पुत्री भी श्राद्ध कर सकती है। अगर किसी महिला के पति की मृत्यु हो गई है और उसकी कोई संतान भी नहीं है तो वह खुद अपने पति के लिए श्राद्ध कर सकती है।
- किसी मृत व्यक्ति की पत्नी भी नहीं है तो उसका जीवित भाई श्राद्ध कर सकता है। पुत्र की संतान अपने दादा-दादी के लिए श्राद्ध कर्म कर सकती है।
- पुरुष अपनी पत्नी का श्राद्ध तब ही कर सकता है जब उसकी कोई संतान न हो। पुत्र, पौत्र, पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है। अगर गोद लिया हुआ पुत्र है या दामाद है तो वह भी श्राद्ध कर सकता है।