वृक्षों में देवी-देवताओं व पितरों का वास, करें जल अर्पित
गोरखपुर
वेदों के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माण पंचतत्व के योग से हुआ है, जिनमें पृथ्वी, वायु, आकाश, जल एवं अग्नि सम्मिलित है। हमारा कर्तव्य है कि हम इसकी रक्षा करें।
सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में प्रकृति को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भारत में प्रकृति के विभिन्न अंगों को देवता तुल्य मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। भूमि को माता माना जाता है। आकाश को भी उच्च स्थान प्राप्त है। वृक्षों की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इसमें हमारे देवी-देवता और पितर वास करते हैं। हमें इनकी रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए। इस वर्षा ऋतु में प्रत्येक नागरिक को कम से कम एक पौधा जरूर रोपना चाहिए। वेदों के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माण पंचतत्व के योग से हुआ है, जिनमें पृथ्वी, वायु, आकाश, जल एवं अग्नि सम्मिलित है। हमारा कर्तव्य है कि हम इसकी रक्षा करें।
हमें प्रकृति के प्रति सदैव ईमानदार होना चाहिए। तभी विश्व का कल्याण होगा। हमें पर्यावरण को खराब किए बिना या स्वास्थ्य या सुरक्षा को जोखिम में डाले बिना संसाधनों का सतत और न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना होगा। भूमि, जल, वनस्पति और वायु के क्षरण को रोकें और नियंत्रित करें। अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्र की जैविक विविधता सहित प्राकृतिक और मानव निर्मित विरासत का संरक्षण और संवर्धन करना होगा।
वर्षाऋतु के साथ ही हमें अपना कर्तव्य मार्ग पर प्रशस्त होने का संकल्प लेना चाहिए। इससे हम पर्यावरण को बचा सकेंगे। सनातन धर्म में पीपल को पूजा जाता है। त्रिवेणी की पूजा की जाती है। त्रिवेणी में सभी देवी-देवताओं एवं पितरों का वास माना जाता है। त्रिवेणी तीन प्रकार के वृक्षों के समूह को कहा जाता है, जिसमें वट, पीपल एवं नीम सम्मिलित हैं।
आधुनिक जीवन शैली में हम प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं। हमें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। किसी भी व्रत त्योहार या उत्सव में मेहमानों को भी एक पौधा उपहार में देना चाहिए। इससे चारों ओर हरियाली बिछी रहे। ऐसा करने से ही विश्व का कल्याण होगा। नई पीढ़ी सुरक्षित रहेगी।
तनिष्का, पर्यावरण मित्र