गगहा में 108 कुण्डीय राष्ट्र जागरण गायत्री-महायज्ञ एवं श्रीमद पावन प्रज्ञा पुराण कथा का वाचन 22 से 

गोरखपुर

गोरखपुर/गगहा। 108 कुण्डीय राष्ट्र जागरण गायत्री-महायज्ञ एवं श्रीमद पावन प्रज्ञा पुराण कथा का वाचन 22 से प्रारंभ होगा। जिसमें विश्वविख्यात प्रखर वक्ता, चिंतक एवं देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार के प्रति कुलपति डाॅ चिन्मय पाण्डया का प्रथम आगमन होगा।

अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के मार्गदर्शन में जनपद के बासूडिहा, गम्भीरपुर, गगहा मे 108 कुण्डीय राष्ट्र जागरण गायत्री-महायज्ञ एवं श्रीमद पावन प्रज्ञा पुराण कथा का आयोजन दिनांक 22 से 26 नवम्बर को होने जा रहा है। यह 108 कुण्डीय राष्ट्र जागरण गायत्री-महायज्ञ गायत्री शक्तिपीठ बासूडिहा गगहा के देव प्रांगण मे सम्पन्न होगा।

25 नवम्बर 2023 को प्रातः विश्वविख्यात चिंतक, प्रखर वक्ता, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के भावी प्रमुख डाॅ चिन्मय पाण्डया का गुरु मच्छेन्द्र नाथ एवं गुरु गोरक्षनाथ की तपोभूमि पर प्रथम आगमन हो रहा है।

इसी कार्यक्रम मे क्रम मे गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी एवं युवा समन्वयक दीना नाथ सिंह ने बताया कि परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का संकल्प युग निर्माण योजना।

युग परिवर्तन का बेला मे विश्वस्तरीय यज्ञीय व्यवस्थाएं चल रही है। हम बदलेगें – युग बदलेगा का संकल्प कराया जा रहा है, जिसका उद्देश्य मनुष्य मे देवत्व का उदय धरती पर स्वर्ग का अवतरण।

मुख्य ट्रस्टी एवं युवा समन्वयक दीना नाथ सिंह ने बताया कि यज्ञ आयोजन मानव कल्याण एवं पर्यावरण की शुद्धिकरण होता है।यज्ञ एक विशिष्ट वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकता है। यज्ञ के जरिये आध्यात्मिक संपदा की भी प्राप्ति होती है। यज्ञ एक अत्यंत ही प्राचीन पद्धति है, जिसे देश के सिद्ध-साधक संतों और ऋषि-मुनियों ने समय-समय पर लोक कल्याण के लिए करवाया। यज्ञ में मुख्यत: अग्निदेव की पूजा की जाती है। भगवान अग्नि प्रमुख देव हैं। हमारे द्वारा दी जाने वाली आहुति को अग्निदेव अन्य देवताओं के पास ले जाते हैं। फिर वे ही देव प्रसन्न होकर उन आहूतियों के बदले कई गुना सुख, समृद्धि और अन्न-धन देते हैं।

यज्ञ मानव जीवन को सफल बनाने के लिए एक आधारशिला है। इसके कुछ भाग विशुद्ध आध्यात्मिक हैं। अग्नि पवित्र है और जहां यज्ञ होता है, वहां संपूर्ण वातावरण, पवित्र और देवमय बन जाता है। यज्ञवेदी में ‘स्वाहा’ कहकर देवताओं को भोजन परोसने से मनुष्य को दुख-दारिद्रय और कष्टों से छुटकारा मिलता है। अग्निदेव से प्रार्थना की गई है कि हे अग्निदेव! तुम हमें अच्छे मार्ग पर ले चलो, हमेशा हमारी रक्षा करो। यज्ञ को शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ कर्म कहा गया है। इसकी सुगंध समाज को सुसंगठित कर एक सुव्यवस्था देती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यज्ञ करने वाले अपने आप में दिव्यात्मा होते हैं। यज्ञों के माध्यम से अनेक ऋद्धियां-सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। यज्ञ मनोकामनाओं को सिद्ध करने वाला होता है। विशेष आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, विशेष संकट निवारण के लिए और विशेष शक्तियां अर्जित करने के लिए विशिष्ट विधि-विधान भी भिन्न-भिन्न हैं। यज्ञ भगवान विष्णु का ही अपना स्वरूप है। इसे भुवन का नाभिकेंद्र कहा गया है। यज्ञ से ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यह इंसान की पाप से रक्षा करता है, प्रभु के सामीप्य की अनुभूति कराता है। मनुष्य में दूसरे की पीड़ा को समझने की समझ आ जाए, अच्छे-बुरे का फर्क महसूस होने लगे तो समझें यज्ञ सफल है। यज्ञ करने वाले आपसी प्रेम और भाईचारे की सुवास हर दिशा में फैलाते हैं।

25 नवम्बर, 2023 को विश्वविख्यात चिंतक, प्रखर वक्ता, देव् संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के प्रतिकुलपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के भावी प्रमुख डाॅ चिन्मय पाण्डया जी का गुरु गोरक्षनाथ-गुरु मच्छेन्द्र नाथ जी के तपोभूमि पर आगमन हो रहा है। डाॅ चिन्मय पाण्डया जी गोरखपुर गायत्री परिवार के जन जन से मिलेगे एवं गोरखपुर मे मानव कल्याण मानव सेवा का कार्य कर रहे संगठनों के प्रमुखों से मिलेगें।

गायत्री परिवार युवा प्रकोष्ठ, गोरखपुर कार्यक्रम को सफल एवं ऐतिहासिक बनाने हेतु कृतसंकल्पित है।

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