16 दिसम्बर से विवाह इत्यादि समस्त मांगलिक कार्य पर लग जायेंगे ब्रेक
गोरखपुर
महीनों की गणना दो प्रकार से की जाति है।एक चंद्रमास के ,द्वितीय सूर्यमास के अनुसार। लेकिन सर्व मान्य सिद्धांत है कि धनु राशि के सूर्य मे मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। यह लगभग एक माह तक रहता है। लेकिन देखा जाता है कि कभी धनु का सूर्य मार्गशीर्ष मास मे ही प्रारंभ होकर पौष महिने में इसकी परिसमाप्ति है जाती है। ऐसी स्थिति में पौष में भी जब मकर का सूर्य प्रारंभ है जाता है तो मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।इस वर्ष ऐसी ही स्थिति बन रही है।
एक माह तक बंद रहेंगे समस्त मांगलिक कार्य
पौष में विवाह नहीं होता, लेकिन इस वर्ष पौष के शुक्ल पक्ष में विवाह होंगे।
16 दिसम्बर से खरमास प्रारम्भ, एक माह तक समस्त मांगलिक कार्यों पर रोक
15 जनवरी, 2024 को पुनः प्रारंभ हो जायेंगे समस्त मांगलिक कार्य
गोरखपुर। आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार इस वर्ष अगहन (मार्गशीर्ष) शुक्ल चतुर्थी दिन शुक्रवार तारीख 16 दिसम्बर को रात्रि में 1 बजकर 26 मिनट पर सूर्य धनु राशि में प्रवेश कर रहे हैं। अर्थात खरमास प्रारम्भ हो जाएगा और यह पौष शुक्ल चतुर्थी दिन सोमवार तारीख 15 जनवरी को प्रातः काल 9 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। मकर का सूर्य 15 जनवरी सन् 2024 को प्रारंभ हो जाएगा। ऐसी स्थिति में पौष शुक्ल चतुर्थी से ही विवाह इत्यादि समस्त मांगलिक कार्य पोषण में ही शुरू हो जाएंगे।
खरमास की परिभाषा
सूर्य के धनु और मीन राशि पर होने से खरमास की शुरुआत होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रहों के राजा सूर्य जब- जब देवताओं के गुरु बृहस्पति देव की राशि धनु और मीन में गोचर करते हैं, तब-तब खरमास का महीना लगता है। इसमें दो तरह की मान्यताएं हैं पहली मान्यता यह है इस महीने में सूर्य का तेज क्षीण हो जाता है क्योंकि सूर्य अपने गुरु की राशि में जाकर नतमस्तक हो जाता है। दूसरी मान्यता के अनुसार या बृहस्पति के राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो बृहस्पति का प्रभाव क्षीण हो जाता है। समस्त कार्यों के लिए तीन ग्रहों के बल की आवश्यकता होती है- ये हैं, सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति।जब ये तीनों ग्रह सशक्त स्थिति में रहते हैं तभी वैवाहिक और शुभ कार्य किए जाते हैं। अमावस्या के निकट सूर्य के प्रभाव से चंद्रमा अस्त हो जाता है इसलिए कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्या को कोई कार्य नहीं किया जाता है।इसी तरह से शुक्र के विषय में भी बताया गया हैं। मान्यताओं के अनुसार दोनों में से किसी एक का बल क्षीण रहता है तो मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। खरमास में हिंदू धर्म में कोई कार्य नहीं होता है, इसमें शुभ कार्य करना वर्जित है परन्तु इस महीने में पूजा पाठ धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मास में किए जाने वाले पूजा-पाठ दान पुण्य के कार्यों से सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है और जीवन में सुख शांति का समावेश होता है। खरमास दो बार लगता है लगभग 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक धनु का खरमास रहता है। सूर्य किसी भी राशि 1 महीने संचरण करते हैं।इस लिए लगभग 1 महीने तक शुभ कार्य नहीं होते हैं।
भगवान सूर्य की पूजा
इस महीने में प्रतिदिन सूर्य की पूजा करनी चाहिए और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ एवं सूर्य मंत्र का जप करना बहुत शुभ माना जाता है। इस महीने में लक्ष्मी नारायण स्त्रोत्र का पाठ या विष्णु सहस्रनाम का पाठ अवश्य करें। जितना हो सके उतना दान भी करें। खरमास में निर्धनों को दान और सहायता करने से देवगण प्रसन्न होते हैं, ऐसा शास्त्रीय मान्यता है।
विहित कार्य
प्रसूतिस्नान, अन्नप्राशन, व्यापार आरंभ करना, भूमि क्रय-विक्रय करना, आभूषण निर्माण, गर्भाधान, जातकर्म, पुंसवन, नामकरण, सीमन्त संस्कार, शस्त्रधारण, आवेदन पत्र लेखन, नौकरी ज्वाइन करना, बीजबोना, आभूषण धारण करना, वाद्यकला का आरंभ, ईंट का निर्माण, ईंट का दहन, धान्यछेदन (फसल की कटाई), वाहन खरीदना, वृक्षारोपण, मुकदमा का आरंभ जैसे कार्य खरमास में भी किए जाते हैं।
एक बात ध्यातव्य है कि खरमास में भी दो ग्रहों का बल बना रहता है, इसलिए कुछ कार्य खरमास में भी किए जाते हैं। परंतु मुख्य धार्मिक शुभ संस्कार इस मास में निषिद्ध है। खरमास में गृहप्रवेश, गृहारंभ, विवाह से संबंधित समस्त मांगलिक कार्य जैसे वरवरण ( तिलक) कन्यावरण, वधू प्रवेश, द्विरागमन, वधू की विदाई, सुदूर देश की प्रथम यात्रा, किसी संस्थान का शुभारंभ करना, किसी विशिष्ट उद्देश्य से सोने सोने चांदी के आभूषणों की खरीदारी करना, मकान निर्माण( परंतु पहले से मकान बन रहा है, तो निषिद्ध नहीं) काम्य कर्मों का अनुष्ठान, विशिष्ट कामना से यज्ञ ,मंदिर में देवताओं की स्थापना, मुंडन, उपनयन , वेदारम्भ, समावर्तन इत्यादि कार्य खरमास में निषिद्ध है। (परंतु चैत्र के खरमास में ब्राह्मण कुमारों का उपनयन होता है।)
मास की कथा पौराणिक
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सूर्य देव अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठकर ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर रहे थे। परिक्रमा के दौरान सूर्यदेव को कहीं भी रुकने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि अगर वह रुक गए तो पूरा जनजीवन रुक जाता। लगातार चलने के कारण घोड़े प्यासे से तड़पने लगे। सूर्य देव रुक गए। घोड़ों की दुर्दशा देखकर सूर्य देव चिंतित होने लगे। ऐसे मे वे एक तालाब के किनारे रुक गए। तालाब के किनारे ले जाकर घोड़ों को पानी पिलाए और खुद भी विश्राम करने लगे। तभी उनको आभास हुआ कि ऐसा करने से अनिष्ट न हो जाए। उन्होंने घोड़े की जगह खरों (गधों ) को रथ में जोड़ दिया। खरों की वजह से रथ की गति धीमी हो गई, हालांकि जैसे ही एक महीने का समय पूरा हुआ, सूर्य ने विश्राम कर रहे घोड़ों को रथ में लगा दिया और खरों को निकाल दिया। इस प्रकार से प्रत्येक वर्ष यह क्रम चलता रहता है। वर्ष में दो बार खरमास का महीना चलता रहता है।