भारत को स्वतंत्र कराने में नेताजी का प्रयास अद्वितीय : डॉ मणि भूषण

गोरखपुर

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ में विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं नेताजी : डॉ. प्रदीप राव

गोरखपुर। विश्व इतिहास की सशस्त्र जनक्रांतियों में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा आजाद हिन्द फौज का गठन कर एवं उसके माध्यम से भारत को स्वतंत्र कराने का प्रयास अपना अद्धितीय स्थान रखता है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपने व्यक्तित्व एवं साहसपूर्ण कार्यो से सम्पूर्ण भारत को प्रतिक्षण एक नई ऊर्जा से सराबोर किया है। उनका जीवन दिव्य एवं धन्य था। माँ भारती के वे सच्चे सपूत थे। भारत कभी भी उनके शौर्य गाथाओं, पराक्रम, बुद्धिमत्ता एवं बलिदान को नही भुला सकता है। भारतीय इतिहास के पन्ने सदैव उनके कृतित्व से गौरव की अनुभूति करते रहेंंगे।

उक्त बाते महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़, गोरखपुर में भारत-भारती पखवाड़ा के अन्तर्गत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती के अवसर पर ‘भारतीय सशस्त्र क्रांति के सूर्य : नेताजी सुभाष चन्द्र बोस’ विषय पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में मुख्य वक्ता गोरखपुर के उपनगर आयुक्त डॉ. मणि भूषण तिवारी ने कहीं। विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि निराशा के क्षणों में जिस धैर्य के साथ नेताजी ने अपना शौर्य और पराक्रम दिखाया, वह हम सभी के लिए अनुकरणीय है। नेताजी ने अपने कृत्यों से यह प्रमाणित कर दिया कि दृढ़ इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास तथा सच्ची लगन और मेहनत से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। नेताजी ने देश के अंदर और देश के बाहर से भी स्वाधीनता संघर्ष जारी रखा। आईसीएस जैसी प्रतिष्ठित और सुविधाओं से युक्त सरकारी नौकरी छोड़कर नेताजी ने यह सन्देश दिया कि जब राष्ट्र पराधीन और समाज विपन्न हो, तो गुलामी के ऐशो आराम से स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयासो की सूखी रोटी और यातना बेहतर होती है।

डॉ. तिवारी ने कहा कि नेताजी को, गांधीजी से दुराव भी इसी कारण हुआ कि चौरीचौरा की घटना के बाद जब असहयोग आन्दोलन और तीव्र करना चाहिए था, तभी गांधजी ने उसे वापस ले लिया। इस घटना से नेताजी काफी दुखी हुए। आगे चलकर अंग्रेजों की नजरबंदी से बचकर वे काबुल, मास्को आदि होते हुए जर्मनी पहुँचे और अंततः सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज का गठन किया तथा सैन्य कार्यवाही करते हुए पूर्वी भारत को लगभग अंग्रेजी शासन से मुक्त करा लिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव ने कहा कि समूचा भारत आज नेताजी के पराक्रम का स्मरण कर रहा है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र हैं जिनकी ऊर्जा युवाओं को राष्ट्रप्रेम हेतु सर्वस्व न्यौछावार कर देने की भावना से सदैव प्रेरित एवं प्रोत्साहित करती रहेगी। स्वतंत्रता के पश्चात की सरकारों के कमजोर इच्छाशक्ति के कारण नेताजी को जो स्थान और सम्मान इतिहास के पन्नों में मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में ऐसे प्रावधानों एवं पाठ्यक्रमों का निर्माण किया गया है जिससे भारत के युवा नेताजी के वीर गाथाओं से भलीभांति परिचित हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि 1932 ई. में पूज्य दिग्विजयनाथ जी महाराज द्वारा स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् स्वतन्त्रता संग्राम का ही एक अंग था। इसकी स्थापना इसी उद्देश्य से की गई थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत का युवा अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों एवं उनके शौर्य गाथाओं से प्रेरणा ले कर राष्ट्र निर्माण के अपनी भूमिका सुनिश्चित कर सके। चौरीचौरा घटना के नायक और नेतृत्वकर्ता महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज ही थे। ऐसे दिव्य महापुरुषों के शौर्य और कर्म को देश कभी भुला नहीं सकता। नेताजी के सपनो के भारत को निर्मित करने में हम सभी को अपना शत-प्रतिशत योगदान देना होगा। यही माँ भारती के ऐसे सपूत को हम सभी की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि होगी । कार्यक्रम का संचालन डॉ. अर्चना गुप्ता तथा आभार ज्ञापन उप-प्राचार्य विनय कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर समस्त शिक्षक तथा विद्यार्थी उपस्थित रहे।

शोध व्याख्यान प्रतियोगिता एवं मानस-पाठ प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

महाविद्यालय में भारत-भारती पखवाड़ा के अन्तर्गत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती के अवसर पर आज शोध व्याख्यान प्रतियोगिता एवं मानस-पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। शोध व्याख्यान प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने भारत : अतीत से भविष्य की ओर, प्राचीन सनातन संस्कृति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020, मिशन चन्द्रयान-3, वैश्विक परिदृश्य एवं भारत, विश्व पटल पर उभरता हमारा इसरो आदि विषयों पर अपनी प्रस्तुति दी। प्रतियोगिता में बी.एड्. प्रथम सेमेस्टर के अरूण कुशवाहा ने प्रथम, बी.ए. तृतीय सेमेस्टर के आशीष पाण्डेय ने द्वितीय तथा बी.ए. तृतीय सेमेस्टर के ही निमिष कुमार सिंह ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. शालू श्रीवास्तव, श्रीमती पुष्पा निषाद एवं श्री अरविन्द कुमार मौर्य द्वारा किया गया। प्रतियोगिता के निर्णायक मण्डल में डॉ. अर्चना गुप्ता, डॉ. अनुभा श्रीवास्तव एवं जितेन्द्र प्रजापति ने सक्रिय सहभाग किया।

इसी क्रम में रामरचित मानस पाठ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। उपस्थित प्रतिभागियों ने रामचरित मानस के बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लंकाकाण्ड एवं उत्तरकाण्ड से सम्बन्धित श्लोकों का सस्वर वचन किया। प्रतियोगिता में बी.काम. चतुर्थ सेमेस्टर की गुड़िया सिंह ने प्रथम स्थान, बी.एड्. प्रथम सेमेस्टर की सुप्रिया दूबे ने द्वितीय स्थान तथा बी.ए. पंचम सेमेस्टर की साक्षी पाण्डेय ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। कार्यक्रम का संयोजन दीप्ति गुप्ता एवं डॉ. अर्चना गुप्ता ने किया। निर्णाक मण्डल के सदस्य के रूप में श्रीमती पुष्पा निषाद, डॉ. अनुभा श्रीवास्तव, साक्षी चौबे ने सहायोग किया।

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