षट्तिला एकादशी व्रत 6 फरवरी को
गोरखपुर
6 फरवरी दिन मंगलवार को सूर्योदय 6 बचकर 31 मिनट पर और माघ कृष्ण एकादशी तिथि का मान दिन में 11 बजकर 37 मिनट तक, पश्चात द्वादशी तिथि,इस दिन मूल नक्षत्र और हर्षण योग तथा छत्र नामक औदायिक योग भी है। उदयातिथि में एकादशी होने से षट्तिला एकादशी के लिए यह दिन पूर्ण प्रशस्त और मान्य रहेगा।
6 फरवरी, मंगलवार को षट्तिला एकादशी व्रत
एकादशी तिथि महिने में दो बार आती है। एक कृष्ण पक्ष की और दूसरी शुक्ल पक्ष की। माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षट्तिला एकादशी कहते हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित तिथि होती है। इस तिथि का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि इस दिन तिल का दान स्वर्ण के दाम के बराबर है। तिल के दान करने वालों को भगवान विष्णु की महती कृपा प्राप्त होती है। और उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। षट्तिला एकादशी के दिन तिल के कई प्रकार से प्रयोग का महत्व है। इस दिन तिल का छह प्रकार -स्नान, उबटन, तर्पण, दान, सेवन और आहुति से प्रयोग किया जाता है। इससे समस्त पापों का उन्मूलन हो जाता है।
सम्पूर्ण माघ मास और षट्तिला एकादशी के दिन तिल दान से बहुत लाभ है। इसके दान से सभी कष्टों से विमुक्ति मिलती है और घर में सम्पन्नता का समावेश होता है। तिल नित्य दान, तिल खाने और जल में तिल मिलाकर स्नान करने से बहुत पुण्य मिलता है। माघ मास में गुड़, तिल और कम्बल का दान महाफलदायी है। काले तिल का सम्बन्ध शनि ग्रह से है इसलिए काले तिल के दान से शनिकृत दोषों से छुटकारा मिलता है। एकादशी या शनिवार, संक्रांति या माघ मास पर्यन्त नित्यप्रति निर्धन व्यक्ति को तिल दान से आर्थिक तंगी दूर होती है। तिल के दान से आर्थिक क्षति समाप्त हो लगता है। ऐसी मान्यता भी है कि इस महिने में जल में तिल मिलाकर शिवलिंग पर अर्पण करने से रोगो से छुटकारा मिलता है।
व्रत पूजा विधि
इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करना चाहिए।पूजा स्थल को साफ कर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।उसकी सुविधि पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु से सम्बंधित मन्त्र- ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का जप, विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम, या श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ अथवा भागवत पुराण के कुछ अंशों का पाठ उत्तम माना जाता है। भगवान विष्णु को प्रसाद में तिल के लड्डू, फल, तुलसी पत्र, धूप , दीप, पुष्प आदि अर्पण करना चाहिए और द्वितीय दिन पूजन के अनन्तर ब्राह्मण भोजन, अन्न, वस्त्र और दक्षिणा के दान के पश्चात ही फार्म करना चाहिए।
धार्मिक मान्यता पर वैज्ञानिक पहलू
प्रत्येक धार्मिक मान्यता के पृष्ठभूमि में वैज्ञानिक पहलू विद्यमान रहता है। तिल पोषक तत्वों का भण्डार है। इसमें मौजूद तत्व आर्थराइटिस की समस्या को दूर करता है। इसमें मैग्नीशियम तत्व की अधिक मात्रा होने से, यह हृदय और श्वसन तंत्र को मजबूत बनाता है। इसमें मौजूद कैल्शियम माइग्रेन सहित अनेक लोगों से बचाता है। यह पाया गया है कि सफेद तिल की अपेक्षा काले तिल में ज्यादा आयरन मिलता है। इसमें फाइबर की ज्यादा मात्रा होती है, इसलिए इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है। इससे शीत ऋतु में ऊर्जा, फाइबर और सेहतमंद वहां मिल जाता है। काले तिल में कैल्शियम, डाइटरी प्रोटीन और एमिनो एसिड भरपूर होता है। यह हड्डियों के विकास में सहायक होता है। तिल आक्सीडेंट है। यह शरीर में कोशिकाओं की क्षति को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। इसलिए यदि इसे माघ महिने में सेवन किया जाए तो अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है। यह भी देखा गया है कि तिल का प्रयोग मानसिक दुर्बलता को कम करता है, तनाव और डिप्रेशन से मुक्ति देता और रक्तचाप को नियंत्रित करता और पाचन को दुरुस्त करना है। इसका सेवन आंतों में कीड़ों को साफ करता और पाचन क्रिया में सुधार का क्रम बनाता है। इसी को देखते हुए धर्मशास्त्रों में इसके दान और सेवन सहित अनेक प्रकार से उपयोग करने का निर्देश दिया गया है।
माहात्म्य की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक महिला के पास प्रचुर सम्पत्ति थी। वह निर्धनों को बहुत कुछ दान करती रहती थी, लेकिन दान में अन्न का प्रयोग नहीं करती थी।ऐसी मान्यता है कि समस्त दानों में अन्न का बड़ा महत्व है, क्योंकि समस्त प्राणी अन्न से ही पोषित होते हैं।यह देखकर भगवान विष्णु उसे शिक्षा देने के लिए,उस महिला के सामने भिखारी के रुप में प्रकट हुए और भोजन की याचना किए। भगवान को निर्धन समझकर पहले जैसा करती रही,उसी के अनुरूप उन्होंने कुछ न दी। भगवान उससे कुछ मांगते रहे। अन्त में वह गुस्से में आ गई और उनके भिक्षापात्र में मिट्टी का एक टुकड़ा दे दी। भगवान ने उसे स्वीकार कर उसे धन्यवाद दिए। महिला जब घर में प्रवेश की तो उसे आश्चर्य हुआ कि उसके घर में रखा समस्त वस्तुएं मिट्टी में परिवर्तित हो गई। अब घर में अन्न के नाम पर कुछ न बचा तो भूख से उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। वह संकट में पड़ गई और भगवान से प्रार्थना करने लगी। महिला की प्रार्थना से भगवान स्वप्न में प्रकट हुए और उन्होंने उस महिला को स्मरण दिलाया जब वह भिखारी को मिट्टी का टुकड़ा दी थी। भगवान विष्णु ने उससे कहे कि ऐसा आचरण कर रह दुर्भाग्य को आमन्त्रित की है। उन्होंने माघ महिने में षट्तिला एकादशी के दिन निर्धनों को तिल, गुड़ और भोजन दान करने की सलाह दिए। महिला ने षट्तिला का व्रत किया और भोजन बनाकर निर्धनों को दान की। परिणामस्वरूप वह समस्त लौकिक सुखों को प्राप्त की और अन्त में भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए परलोक चली गई
– आचार्य पंडित शरदचन्द्र मिश्र