भारतीय नारी ही अपनी पीढ़ी को परंपराओं से बांधती है : प्रो. हिमांशु

पाठशाला

गोरखपुर। राष्ट्रीय सेवा योजना के तत्वावधान में रामदत्तपुर महाराणा प्रताप महिला पी.जी .कॉलेज में सप्तदिवसीय विशेष शिविर का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र के अंतर्गत मंगलवार को “भारतीय राष्ट्रवाद एवं वंदे मातरम” विषय पर व्याख्यान गोष्टी का आयोजन हुआ। जिसमें प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी पूर्व अध्यक्ष इतिहास विभाग दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर की उपस्थिति रही। विषय को सारगर्भिता प्रदान करते हुए उन्होंने बताया कि भारत दुनिया का एक अकेला देश है जो मातृभूमि को मां कहता है।‌ भारतीय नारी ही है जो अपनी पीढ़ी को परंपराओं से भरती है। भारतवासी देश को जननी कहता है तो वह भारत मां में परिवर्तित होकर उनमें ऊर्जा संस्कार भरकर भारत के विकास में योगदान देती है।

भारतीय राष्ट्रवाद का ताना बाना वंदे मातरम् से जुड़ा हुआ है। वंदेमातरम् तमाम विरोधों का सामना करने के पश्चात् भारतीय चैतन्यता के रूप में भारत वासियों में विद्यमान है। वस्तुतः वंदे मातरम् अरविंदो आकियार्ड घोष से श्री श्री अरविन्दो तक की यात्रा है। भारत की राष्ट्रीय चेतना वेदकाल से अस्तित्वमान है। अथर्ववेद में पृथ्वी सूत्र में धरती माता का यशोगान किया गया है। राष्ट्रीयता के इसी भावना को प्रकाशित करता वंदेमातरम् राष्ट्रीय भावना का परिचायक है जो जन-जन में प्राण फूंक देने की सामर्थ्य रखता है। राष्ट्र की परिभाषा एक ऐसे जनसमूह के रूप में की जा सकती है जो की एक भौगोलिक सीमाओं में एक निश्चित देश में निवास करता हो। समान परंपरा समान हितों तथा सामान भावनाओं से बंधा हो तथा जिसमें एकता के सूत्र में बांधने की उत्सुकता सामान राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं पाई जाती हों। राष्ट्रवाद के निर्णायक तत्वों में राष्ट्रीयता की भावना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीयता की भावना किसी राष्ट्र के सदस्यों में पाई जाने वाली सामुदायिक भावना है जो जनमानस का संगठन सुदृढ़ करती है। दिनांक 7 नवंबर 1876 बंगाल के कातल पांडा गांव में बंकिमचन्द्र चटर्जी ने वंदेमातरम् की रचना की । भारत का यह राष्ट्रीय गीत सर्वप्रथम सन् 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में कलकत्ता में गाया गया। वस्तुत: वंदेमातरम् ऐसा मंत्र है जिसे अपने हृदय में अंकुरित करके देश के अमर बलिदानी सपूत मातृभूमि के लिए स्वयं को कुर्बान कर गए। देश को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद कराने के लिए कितने वीर फांसी के फंदे पर खुशी-खुशी झूल गए यह राष्ट्रगीत नहीं अपितु राष्ट्र की आत्मा भी है। यह सच है‌ की वंदेमातरम् शब्द आते ही मन में देश प्रेम की भावना जागृत हो जाती है। देश के गौरव पर हमारा सिर स्वत: ऊंचा हो जाता है। वंदेमातरम् मातृभूमि की वंदना का साधन भी है।

मुख्य अतिथि एवं वक्ता प्रोफ़ेसर हिमांशु चतुर्वेदी पूर्व अध्यक्ष इतिहास विभाग दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर, प्राचार्य डॉ. सीमा श्रीवास्तव, कार्यक्रम अधिकारी डॉ. ममता श्रीवास्तव एवं संचालिका डॉ.मांगलिका त्रिपाठी।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित करने के पश्चात् दीप प्रज्ज्वलन करने के उपरांत किया गया। तत्पश्चात् स्वयं सेविकाओं द्वारा मां सरस्वती की वंदना की गई। कार्यक्रम को गति प्रदान करते हुए स्वयं सेविकाओं द्वारा राष्ट्रीय सेवा योजना का गीत “हम होंगे कामयाब” समवेत् स्वर में गाया गया। सप्तदिवसीय विशेष शिविर के सातों दिनों का क्रमबद्ध परिचय कार्यक्रम अधिकारी डॉ. ममता श्रीवास्तव द्वारा कराया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सीमा श्रीवास्तव ने की। अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने स्वयंसेविकाओं का मार्गदर्शन करते हुए बताया कि राष्ट्रीय सेवा योजना युवा वर्ग के व्यक्तित्व के निर्माण का मार्ग है जिसमें वह जाति -पाति की भावना से परे होकर मिल- जुलकर सामुदायिक भावना को जागृत करते हैं तथा यही भावना अपने परिवार तथा देश के लिए रखते हैं। उन्होंने बताया कि छात्राओं को मिले गए बैच में जो विभिन्न रंग होते हैं उसका हमारे जीवन में विशेष महत्व होता है। लाल रंग उत्तेजना का प्रतीक होता है जो स्वयंसेविकाओं में नेतृत्व करने की भावना जागृत करता है। साथ ही बैंगनी रंग ब्रम्हांड का प्रतीक है जो हमें आत्मबोध कराता है कि हम ईश्वर के अंश मात्र है और कर्म करने की भावना से प्रेरित होकर सृष्टि के संचालन में अपने दायित्व का निर्वहन करें। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मांगलिका त्रिपाठी तथा आभार ज्ञापन डॉ. नीलम वैश्य ने किया । उक्त कार्यक्रम में महाविद्यालय के समस्त प्रवक्तागण/कर्मचारीगण सहित समस्त स्वयंसेविकाएं/छात्राएं उपस्थित रहीं।

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