रामायण भगवान् श्री राम का शरीर : बालकदास

गोरखपुर

गुरु पूर्णिमा पर्व पर श्रीगोरखनाथ मन्दिर में साप्ताहिक श्रीराम कथा शुभारंभ

श्रीराम कथा का प्रथम दिवस

गोरखपुर। गुरु पूर्णिमा पर्व के पावन अवसर पर साप्ताहिक श्रीराम कथा का भव्य आयोजन श्रीगोरखनाथ मन्दिर स्थित महन्त दिग्विजय नाथ स्मृति सभागार में  किया गया है। कथा के प्रथम दिवस में आज कथा व्यास सन्त हृदय बालकदास ने कथा के प्रारंभ में रामायण माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा कि रामायण भगवान् श्री राम का शरीर है तथा इसमें सात काण्ड उनके शरीर के सात अंग हैं। रामायण का बाल काण्ड उनका पाद है, अयोध्या काण्ड उनका कटि भाग है, अरण्य काण्ड नाभि भाग है, किष्किन्धा काण्ड उदर भाग है, सुन्दर काण्ड हृदय भाग है, लंका काण्ड ग्रीवा भाग है और उत्तर काण्ड उनका मस्तक भाग है तथा रामायण के प्रत्येक शब्द उनके शरीर के रोम हैं। इस प्रकार से सम्पूर्ण रामायण भगवान् राम का स्वरूप हीं है। रामायण की एक चौपाई भी हमारी मुक्ति का साधन बन सकती है।


उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम की कथा जहां होती है वहाँ हनुमान जी दौडे चले आते हैं। आप अपने घर में भी अगर नित्य रामायण की चौपाइयों का गान करते हैं तो हनुमान जी आपके घर में नित्य निवास करते हैं।
कथा व्यास ने कहा कि जब तक हमारे अन्दर भगवान् पर पूरा भरोसा नहीं होता, तब तक भगवान् की कृपा का हम अनुभव नहीं कर पाते। इसलिए उसी भक्त को भगवान् की भक्ति मिलती जो अपने प्रभु पर अनन्य भाव से भरोसा करता है। जिसने अपने जीवन की नैया भगवान् के भरोसे छोड़ दी उसके नाविक भगवान् स्वयं हो जाते हैं।
गुरु महिमा का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने कहा कि गुरु एक ऐसा सूर्य होता है जो अपने शिष्य को घने अन्धकार से निकाल लेता है। गुरु के चरण नख का स्पर्श करने से जन्म जन्मान्तर के पाप कट जाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान् शंकर को हीं अपना गुरु बना लिया और उनके उपदेश को अपने जीवन में आत्मसात् करके प्रभु श्री राम की परम भक्ति प्राप्त करली। अन्य सभी देवी देवताओं के लिए अन्य सभी तिथियों को बताया गया लेकिन गुरु की पूजा के लिए पूर्णिमा तिथि रखी गयी, क्योंकि गुरु हीं पूर्ण है। पूर्ण गुरु हीं पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करा सकता है।
उन्होंने “गुरुदेव दया करके‌ मुझको अपना लेना, मै शरण पड़ा तेरे चरणों में जगह देना” भजन गाकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
रामचरितमानस के प्रारंभिक छन्दों का गान करते हुए उन्होंने कहा कि गोस्वामी जी गुरु वन्दना के बाद पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों व सन्तों की वन्दना करते हैं। वे कहते है कि जिसके पीछे भक्त चलते हैं वो साधु होता है और जिसके पीछे भगवान् चलते हैं वह सन्त होता है। सन्त की कृपा जिसके ऊपर हो जाए उसके ऊपर भगवान् अपने आप कृपा करते हैं।
कथा प्रारंभ के पूर्व गोरखनाथ मंदिर के गर्भ गृह से अखण्ड ज्योति एवम पोथी की शोभायात्रा योगी कमलनाथ जी के अगुवाई में संत, महात्मा और यजमान के साथ कथा स्थल तक धूमधाम से पहुंची ।
कथा के अंत में व्यास पीठ की आरती प्रमुख रूप से गोरखनाथ मन्दिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, कालीबाडी के महन्त रविन्द्रदास, योगी धर्मेंद्रनाथ, हनुमान मंदिर के महंत रामदास, महंत शिव नारायण दास, द्वारिका तिवारी, मुख्य यजमान बैजनाथ जायसवाल, श्रीमती संगीता जायसवाल, उमेश अग्रहरि, श्रीमती बबिता अग्रहरि, अमित कुमार जायसवाल, श्रीमती रीतू जायसवाल, अजय सिंह ने की। मंच संचालन डॉ अरविन्द चतुर्वेदी ने किया।

कथा में वीरेन्द्र सिंह, डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, दयानन्द शर्मा, डॉ.रोहित कुमार मिश्र, डॉ. प्रांगेश कुमार मिश्र, नित्यानंद तिवारी, दयानन्द शर्मा और श्रद्धालु जन उपस्थित रहे।

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