शक्ति और भक्ति से चुनौतियों पर विजय प्राप्त होती है: बालक दास

गोरखपुर

गोरक्षनाथ मन्दिर प्राङ्गण में आयोजित सात दिवसीय श्रीराम कथा का आरम्भ वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ हुयी

श्रीराम कथा का दूसरा दिन 

गोरखपुर। गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में गोरक्षनाथ मन्दिर प्राङ्गण में आयोजित सात दिवसीय श्रीराम कथा वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ कथा आरम्भ हुयी।

दूसरे दिन मंगलवार को कथा व्यास बालकदास नें कहा कि अपने वनवास के दौरान भगवान श्री राम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी शक्ति, बुद्धि और भक्ति से उन चुनौतियों पर विजय प्राप्त की। वे विभिन्न ऋषियों और संतों से मिले, उनके हर एक चुनौतियों ने उनके चरित्र और विश्वासों को आकार दिया।  उन्होंने कहा कि आदर्श पुरुष श्रीराम स्नेह के आगार थे। उनका मातृप्रेम, पितृप्रेम एवं भ्रातृ-प्रेम तो सर्वविदित ही है। किन्तु वे गुहराज निषाद, सुग्रीव, विभीषण आदि से भी समान भाव से स्नेह रखते थे। उनका यह स्नेह स्वार्थभाव से युक्त नहीं था। वे स्वार्थवश किसी को प्रिय नहीं समझते, अपितु स्नेही स्वभाव होने के कारण सभी से स्वार्थरहित होकर स्नेह करते हैं।

व्यास पीठ की आरती पूजन करते काली बाड़ी के महंत रविन्द्र दास, प्रधान पुजारी कमल नाथ व अन्य।

 

कथा व्यास नें हनुमान के गुणों की व्याख्या करते हुए कहा कि अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद प्रभु श्रीराम ने उन सभी को सम्मानित करने का निर्णय लिया जिन्होंने लंका युद्ध में रावण को पराजित करने में उनकी सहायता की थी। उनकी सभा में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया जिसमें पूरी वानर सेना को उपहार देकर सम्मानित किया गया। हनुमान को भी उपहार लेने के लिये बुलाया गया, हनुमान मंच पर गये किन्तु उन्हें उपहार की कोई जिज्ञासा नहीं थी। हनुमान को ऊपर आता देखकर भावना से अभिप्लुत श्रीराम ने उन्हें गले लगा लिया और कहा कि हनुमान ने अपनी निश्छल सेवा और पराक्रम से जो योगदान दिया है, उसके बदले में ऐसा कोई उपहार नहीं है जो उनको दिया जा सके। किन्तु अनुराग स्वरूप माता सीता ने अपना एक मोतियों का हार उन्हें भेंट किया। उपहार लेने के उपरांत हनुमान माला के एक-एक मोती को तोड़कर देखने लगे, ये देखकर सभा में उपस्थित सदस्यों ने उनसे इसका कारण पूछा तो हनुमान ने कहा कि वो ये देख रहे हैं मोतियों के अन्दर उनके प्रभु श्रीराम और माता सीता हैं कि नहीं, क्योंकि यदि वो इनमें नहीं हैं तो इस हार का उनके लिये कोई मूल्य नहीं है। ये सुनकर कुछ लोगों ने कहा कि हनुमान के मन में प्रभु श्रीराम और माता सीता के लिये उतना प्रेम नहीं है जितना कि उन्हें लगता है। इतना सुनते ही हनुमान ने अपनी छाती चीर के लोगों को दिखाई और सभी ये देखकर स्तब्द्ध रह गये कि वास्तव में उनके हृदय में प्रभु श्रीराम और माता सीता की छवि विद्यमान थी।

उन्होंने गुरुपूर्णिमा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु का केवल अस्तित्व, समीप होना अथवा साथ होना ही शिष्य की साधना के लिए पर्याप्त होता है और प्रगति अपने आप होती है। इसका एक अच्छा उदाहरण है सूर्य, जिसके उदय के साथ सब जग जाते हैं और फूल खिलने लगते हैं। यह मात्र अस्तित्व से साध्य होता है। सूर्य कभी किसी को जगने के लिए अथवा फूलों को खिलने के लिए नहीं कहता। गुरु के मुख से निकले शब्दों व गुरुवाणी को सुनने मात्र से शिष्य को ज्ञान ही नही मिलता उसका जीवन भी बदल जाता है। गुरु के बिना शिष्य का सफल जीवन मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है।

मंच पर कथा के दौरान शिव पार्वती विवाह की मनोरम झांकी प्रस्तुत की गई। कथा का विश्राम आरती से हुआ।

इस अवसर पर गोरखनाथ मन्दिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, महन्त रविन्द्रदास, यजमान उमेश अग्रहरि उपस्थित रहे।

संचालन डॉ० अरविन्द कुमार चतुर्वेदी ने किया।

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