‘‘पुरुषों में नपुंसकता और महिलाओं में बांझपन का कारण भी बन सकता है फाइलेरिया’’

गोरखपुर

बीमारी के दुष्प्रभावों का मुख्य संदेश जन जन तक पहुंचा कर दवा खिलाने की अपील

मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में हुआ ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण

गोरखपुर। क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होने वाली फाइलेरिया नामक बीमारी का दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक दुष्प्रभाव पड़ता है। इस बीमारी को हाथीपांव के नाम से जानते हैं जिसमें शरीर के लटकने वाले अंगों में भयानक सूजन हो जाता है। महिलाओं के स्तन में सूजन और पुरूषों में हाइड्रोसील की भी दिक्कत आती है। इस बात के भी वैज्ञानिक प्रमाण मिले हैं कि फाइलेरिया संक्रमित पुरूषों में नपुंसकता और महिलाओं में बांझपन की समस्या हो सकती है।

यह जानकारी जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह ने दी। उन्होंने ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करते हुए कहा कि इन संदेशों को जन जन तक पहुंचा कर लोगों को फाइलेरिया की दवा खिलानी है । अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एके चौधरी की अध्यक्षता में दो अलग अलग बैच में गुरूवार को शाम तक प्रशिक्षण चला। जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ राजेश कुमार और डीसीपीएम रिपुंजय पांडेय ने भी प्रशिक्षण दिया । डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉ नित्यानंद, पाथ संस्था के प्रतिनिधि डॉ एनके पांडेय, अभिनय कुशवाहा और पीसीआई संस्था के प्रतिनिधि प्रणव पांडेय ने भी तकनीकी जानकारियां साझा कीं।

जिला मलेरिया अधिकारी ने कहा कि ब्लॉक और शहरी पीएचसी पर गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण का आयोजन कराना होगा । यह अभियान 10 अगस्त से दो सितम्बर तक चलना है। इसमें दो सदस्यों की टीम घर घर जाकर दवा खिलाएगी। मुख्य सदस्य आशा कार्यकर्ता होंगी और जिन क्षेत्रों में आशा नहीं हैं वहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता टीम की प्रथम सदस्य होंगी। टीम का दूसरा सदस्य पुरूष रखा जाएगा ताकि वह पुरूषों में हाइड्रोसील की आसानी से पहचान कर सके और शाम को घर लौटने वालों को भी घर पहुंच कर दवा खिला सके। दवा का सेवन सप्ताह में चार दिन सोमवार, मंगलवार, गुरूवार और शुक्रवार को करवाया जाएगा। यह दवा एक वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को आयु वर्ग के अनुसार निर्धारित मात्रा में टीम के सामने खिलाई जाएगी । जिन घरों में दवा खिलाई जाएगी वहां मार्किंग भी होगी।

उन्होंने कहा कि इस अभियान में उन लोगों को दवा खिलाने पर विशेष जोर देना है जिन्होंने कभी भी फाइलेरिया से बचाव की दवा नहीं खाई है। लोगों को यह समझाना है कि जिन्हें फाइलेरिया नहीं है, उन्हें तो अवश्य ही इस दवा का सेवन करना है। सिर्फ गर्भवती, एक साल से कम उम्र के बच्चों और बिस्तर पकड़ चुके अति गंभीर बीमार लोगों को दवा नहीं खिलाई जाएगी। लोगों में यह संदेश भी देना है कि जिन लोगों के शरीर में माइक्रो फाइलेरिया मौजूद होते हैं, वह जब दवा का सेवन करते हैं तो कई बार चक्कर आना, मतली होना जैसे लक्षण आते हैं और यह अपने आप ठीक भी हो जाता है। यह सामान्य लक्षण हैं और इनसे घबराने की आवश्यकता नहीं है। खाली पेट इस दवा का सेवन नहीं करना है।

इस मौके पर जिला कार्यक्रम प्रबन्धक पंकज आनंद, सहायक मलेरिया अधिकारी राजेश चौबे, जेई एईएस कंसल्टेंट सिद्धेश्वरी सिंह, शहरी स्वास्थ्य मिशन के समन्वयक सुरेश सिंह चौहान और सभी मलेरिया व फाइलेरिया इंस्पेक्टर्स मौजूद रहे।

40 फीसदी मरीज भारत में

जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि अब तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार यह बीमारी विश्व के 72 देशों में मौजूद है। अपने देश के 60 करोड़ लोगों पर इस बीमारी का खतरा विद्यमान है और करीब 10 फीसदी दिव्यांगता की आशंका भी प्रबल रहती है। विश्व के कुल मरीजों में करीब 40 फीसदी फाइलेरिया मरीज भारत में ही रहते हैं। सार्वजनिक दवा सेवन कार्यक्रम के कारण संक्रमण चक्र टूटने से इन आंकड़ों में धीरे धीरे कमी आ जाएगी।

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