महान फल देने वाले योग में वैनायकी वरद गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को
गोरखपुर
गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है, किन्तु महाराष्ट्र व कर्नाटका में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान श्री गणेश जी का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। गणेश चतुर्थी पूरी तरह से भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित है। यह त्यौहार भाद्रपद माह की चतुर्थी तिथि और शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। वैनायकी वरद श्री गणेश चतुर्थी 7 सितंबर, 2024 दिन शनिवार को है।
आचार्य पंडित शरदचंद्र मिश्र (अध्यक्ष रीलिजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी, गोरखपुर) के अनुसार चतुर्थी तिथि शनिवार को सूर्योदय 5 बजकर 48 मिनट पर और चतुर्थी का मान दिन में 2 बजकर 5 मिनट तक है। इस दिन मध्याह्न काल में चतुर्थी तिथि होने से वैनायकी वरद् चतुर्थी व्रत और पूजन इसी दिन होगा। पुराणों में कहा गया है कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न समय विघ्न विनायक भगवान श्रीगणेश जी का जन्म हुआ था। इसलिए इसे मध्याह्न व्यापिनी ही ग्रहण करना चाहिए। इस दिन यदि मंगलवार या रविवार हो तो अत्यंत प्रशस्त माना जाता है। वैसे शनिवार का योग भी महान फल देना वाला है। गणेश जी हिन्दूओं में आदिम देवता हैं। सनातन धर्मावलम्बीयों स्मार्तों के पंच देवताओ में गणेश जी श्रीगणेश जी प्रमुख हैं। सनातन हिन्दू परिवार में चाहें कोई पूजा हो, सर्वप्रथम गणेश जी का आवाहन और पूजन पहले किया जाता है। शुभ कार्यों में गणेश की स्तुति का अत्यंत महत्व माना गया है गणेश जी विघ्नों को दूर करने वाले देवता हैं। इनका मुख हाथी का है। उदर लंबा है तथा शेष शरीर मनुष्य के समान है। मोदक इन्हें विशेष प्रिय है। महाराष्ट्र में गणेश पूजा बंगाल के दुर्गा पूजा की तरह एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है। गणेश चतुर्थी के लिए नक्त व्रत का विधान है। दिन भर व्रत के बाद सायंकाल भोजन करना चाहिए। पूजा यथा संभव मध्याह्न में ही करनी चाहिए। क्योंकि-पूजा=व्रतेषु सर्वेषु मध्याह्न व्यापिनी तिथि:। अर्थात गणेश के व्रत में मध्याह्न व्यापिनी ही लेनी चाहिए।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को प्रातः काल स्नानादि नित्य कर्म से निवृत होकर अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी, मिट्टी, पीतल अथवा गाय के गोबर से गणेश की प्रतिमा बनाएं या बनी बनी हुई बनी हुई प्रतिमा का पुराणों में वर्णित गणेश जी के गजानन, लंबोदर स्वरूप का ध्यान करें और अक्षत फूल लेकर संकल्प करें-
“ऊं अद्य अमुक गोत्र: अमुक प्रवर: अमुक नामाहं विद्या आरोग्य पुत्र धन प्राप्ति पूर्वकं सपरिवारस्य मम संकट निवारणार्थ श्री गणपति प्रसाद सिद्धये चतुर्थी व्रतागंत्वेन श्री गणपति देवस्य यथालब्धपचारै: पूजनं करिष्ये।”
साथ में लिए अक्षत और पुष्प इत्यादि को गणेश जी के पास छोड़ दें।उसके बाद विघ्नेश्वर का यथाविधि – ऊं गंगणपतये नमः – से पूजन कर दक्षिणा के पश्चात गणेश जी को नमस्कार करें एवं गणेशजी को सिन्दूर चढ़ाए।मोदक और दूर्वा इस पूजा की विशेषता है। अतः पूजा के अवसर पर 21 दूब भी रखें और उसमें से दो -दो दूब निम्नलिखित दस नाममंत्रो से चढ़ाएं।
- ऊं गणाधिपतये नमः
- ऊं उमापुत्राय नमः
- ऊं विघ्ननाशनाय नमः
- ऊं विनायकाय नमः
- ऊं ईशपुत्राय नमः
- ऊं सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
- ऊं एकदंताय नमः
- ऊं इभवक्त्राय नमः
- ऊं मूषकवाहनाय नमः
- ऊं कुमारगुरवे नमः।।
पश्चात दस नामों का उच्चारण कर अवशिष्ट एक दूब चढ़ाएं।इसी प्रकार इक्कीस लड्डू भी गणेश जी को आवश्यक होता है। इक्कीस का भोग लगाकर पांच लड्डू मूर्ति के पास रखें और पांच ब्राह्मणों को दे दें। शेष को प्रसाद रुप में स्वयं ले लें और परिवार के लोगों में वितरित कर दें।
पूजन की यह विधि चतुर्थी के मध्य काल में करें।यदि की दिन पूजा करना चाहते हैं तो तीन दिन, पांच दिन, सात या नौ दिन अथवा चतुर्दशी तिथि तक करें। समस्त चढ़ाई गई वस्तु अंतिम दिन हवन कर सुपात्र विद्वान ब्राह्मण को दे दें। उस सयय कहें- दान अनेन प्रीतो भव गणेश्वर। ऐसा करने से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं क्योंकि विघ्नेश्वर गणेश जी के प्रसन्न होने पर कुछ भी दुर्लभ नही है। गणेश जी का यह पूजन बुद्धि, विद्या तथा सम्पन्नता और विघ्नों के नाश के लिए किया जाता है। इस दिन अनेक लोग विशेष कृपा प्राप्ति के लिए एक हजार नामों से गणपति सहस्त्रार्चन भी करते हैं। इसमें गणेश जी की प्रिय वस्तु दूर्वादल और लड्डू से पूजन करते हैं।