पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए, जान लें तर्पण की तिथियां और विधि

गोरखपुर

पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधि-विधान से अनुष्ठान किए जाते हैं। पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध के अनुष्ठानों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। इस बार पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक रहेगा।

आचार्य पंडित शरदचन्द्र मिश्र,

गोरखपुर। पितृपक्ष में पूर्वजों को याद करके दान धर्म करने की परंपरा है। हिन्दू धर्म में इन दिनों का खास महत्व है। पितृ पक्ष पर पितरों की मुक्ति के लिए कर्म किए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ नाराज हो जाएं तो घर की तरक्की में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। यही कारण है कि पितृ पक्ष में पितरों को खुश करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। पितृ पक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है। ये अमावस्या तिथि तक रहता है। इस बार पितृपक्ष का श्राद्ध शुभ दिन मंगलवार 17 सितंबर से प्रारंभ होकर 2 अक्टूबर दिन बुधवार तक रहेगा। वैसे तो आश्विन कृष्ण पक्ष 19 सितंबर से 2 अक्टूबर तक है परन्तु श्राद्ध का कार्य एक दिन भाद्रपद पूर्णिमा से ही शुरू हो जाता है। इसलिए महालयारंभ ( पितृपक्ष का श्राद्ध) 18 सितंबर ही माना जाएगा।यह प्रश्न अहम है कि जब आश्विन कृष्ण पक्ष 19 सितम्बर से हो तो श्राद्ध का कार्य दो दिन पहले क्यो प्रारंभ होगा? इस का उत्तर यह है कि जो पितर पूर्णिमा की तिथि को दिवंगत है उनका श्राद्ध एक दिन पूर्व पूर्णिमा की तिथि को ही किया जाता है। क्योंकि कृष्ण पक्ष में पूर्णिमा नहीं होती है। इस प्रकार तर्पण और श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अर्थात 17 सितंबर से ही आरंभ हो जाएगा।
17 सितंबर को भाद्रपद चतुर्दर्शी तिथि को सूर्योदय 5 बजकर 56 मिनट पर और चतुर्दशी तिथि का मान दिन में 11 बजे तक पश्चात पूर्णिमा तिथि है। इस दिन कुतप बेला में पूर्णिमा होने से जिन पितरों की क्षयाह तिथि पूर्णिमा को है, उनका श्राद्ध इसी दिन होगा। 18 सितंबर दिन बुधवार को सूर्योदय भी सूर्योदय 5 बजकर 56 मिनट पर और पूर्णिमा तिथि प्रातः 8 बजकर 41 मिनट पश्चात प्रतिपदा तिथि है। इस दिन दोपहर अर्थात कुतप बेला में प्रतिपदा होने से प्रतिपदा ( पहली तिथि कि श्राद्ध) इसी दिन किया जाएगा। चतुर्थी और भरणी श्राद्ध 21 सितंबर को मातृनवमी श्राद्ध 26 सितंबर को सन्यासी यति वैष्णव श्राद्ध और मघा श्राद्ध 29 सितंबर घात चतुर्दशी का श्राद्ध पहली अक्टूबर, तथा सर्व पैत्री अमावस्या श्राद्ध ( पितृ विसर्जन) 2 अक्टूबर को सम्पन्न होगा।

  • श्राद्ध तालिका
    17 सितंबर को -पूर्णिमा श्राद्ध
  • 18 सितंबर को -प्रतिपदा श्राद्ध
  • 19 अक्टूबर को -द्वितीया श्राद्ध
  • 20 सितंबर -तृतीया श्राद्ध
  • 21 सितंबर -चतुर्थी श्राद्ध
  • 22 सितंबर को -पंचमी श्राद्ध
  • 23 सितंबर को -षष्ठी श्राद्ध
  • 24 सितंबर को सप्तमी श्राद्ध
  • 25 सितंबर को -अष्टमी श्राद्ध
  • 26 सितंबर को -नवमी श्राद्ध
  • 27 सितंबर को -दशमी श्राद्ध
  • 28 सितंबर -एकादशी का श्राद्ध
  • 29 सितंबर को -द्वादशी श्राद्ध
  • 30 सितंबर को त्रयोदशी श्राद्ध
  • पहली अक्टूबर को -चतुर्दशी श्राद्ध
  • 2 अक्टूबर को अमावस्या का श्राद्ध।
  • 3 अक्टूबर को प्रातःकाल दौहित्र कृत मातामह श्राद्ध ( नाना जी के लिए) प्रशस्त है।

मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। उनकी कृपा से जीवन में आने वाली कई प्रकार की रुकावटें दूर होती हैं। व्यक्ति को कई तरह की दिक्कतों से भी मुक्ति मिलती है।

 

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