गोमाता के दर्शन, स्पर्श और गोदुग्ध पान से मिट जाते हैं पाप, ताप, संताप : स्वामी विद्या चैतन्य

गोरखपुर

युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में सम्मेलन का पांचवां दिन

‘भारतीय संस्कृति एवं गोसेवा’ विषयक सम्मेलन में बोले नैमिषारण्य से आए संत

गोसेवा भारतीय संस्कृति की अक्षुण्ण पहचान : स्वामी विद्या चैतन्य

गोरखपुर। नैमिषारण्य से पधारे स्वामी विद्या चैतन्य ने कहा कि गोसेवा भारतीय संस्कृति की अक्षुण्ण पहचान है। हम सनातनी भारतीय भारत और गाय, दोनों को समान भाव से देते हुए माता के सम्मान से विभूषित करते हैं इसलिए भारतीय संस्कृति और गोसेवा एक दूसरे के बिना अधूरे प्रतीत होंगे।

स्वामी विद्या चैतन्य

स्वामी विद्या चैतन्य गुरुवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के पांचवें दिन ‘भारतीय संस्कृति एवं गोसेवा’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ने गोमाता की सेवा को देव सेवा के तुल्य माना है। हमारी सनातनी मान्यता है कि गोमाता के अंगों में 33 कोटि देवता विद्यमान हैं। गोमाता का दर्शन, उनका स्पर्श और गोदुग्ध का पान करने से सारे पाप, ताप और संताप समाप्त हो जाते हैं। महर्षि देवरहा बाबा ने कहा था कि गोबर के लेपन से घर में भी 33 कोटि देवों का वास होता है। गो की इसी महत्ता के चलते भारतीय लोगों ने गोसेवा को अनादिकाल से अपनी संस्कृति में सम्मिलित कर लिया। उन्होंने कहा कि आज हम यदि गोसेवा और गो संरक्षण से विमुख होंगे तो सीधे तौर पर भारतीय संस्कृति से विमुख होंगे। भारतीय संस्कृति में तो गो को आर्थिक समृद्धि का भी प्रमुख आधार माना गया है। वैदिक काल में किसी व्यक्ति की समृद्धि का मानक उसके पास गायों की संख्या होती थी। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को उसका उत्कर्ष काल वापस दिलाने के लिए गोसेवा और गो संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी।

भारतीय संस्कृति और गोसेवा की ध्वजवाहक है गोरक्षपीठ

स्वामी विद्या चैतन्य ने कहा कि गोरक्षपीठ भारतीय संस्कृति और गोसेवा की ध्वजवाहक है। इस पीठ ने सदैव भारतीय संस्कृति और गोमाता के संरक्षण का बीड़ा उठाया है। किसी को भी भारतीय संस्कृति और गोसेवा का संगम कहीं देखना हो तो उसे गोरक्षपीठ आना चाहिए। यह पीठ भारतीय संस्कृति और गोसेवा के लिए सभी का मार्गदर्शन करती है। गोहत्या बंद करने के लिए संत समाज हमेशा अग्रणी रहा है और इसमें भी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका गोरक्षपीठ के संतों ने निभाई है।

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जागृत हुआ उत्तर प्रदेश का गौरव

स्वामी विद्या चैतन्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति के रक्षक और गोसेवा के प्रतिमान योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश का गौरव जागृत हुआ है। हर सनातनी को इसका गर्व है कि उत्तर प्रदेश का नेतृत्व एक संस्कृति संवाहक के हाथों में है। गोरक्षपीठ के गुरुजनों ने भारतीय संस्कृति और गोसेवा को जिस तरीके से आगे बढ़ाया उसी तरीके से योगी आदित्यनाथ इसे नई ऊंचाई प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश गोहत्या बंद करने की राह पर आगे बढ़ चला है। स्वामी विद्या चैतन्य ने कहा कि योगी जी के नेतृत्व में भारतीय संस्कृति की संरक्षण के लिए ही ऋषियों-मुनियों की भूमि नैमिषारण्य का विकास भी अयोध्या, काशी, मथुरा-वृंदावन की तर्ज पर हो रहा है।

सम्मेलन में नीमच (मध्य प्रदेश) से आए महंत लालनाथ ने कहा कि हमारे देश में पहले गोसेवा घर-घर की थी। सभी लोग गायों को रखते थे, और पर्याप्त मात्रा में दूध, घी, दही आदि का सेवन कर स्वस्थ व सुखी रहते थे। गाय हमारी दैनिक संस्कृति में सम्मिलित थी। पर, आज हम पाश्चात्य सभ्यता के अनुकरण में गोसेवा से दूर हो गए हैं। इसके चलते अनेक व्याधियों से ग्रसित भी हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस समय सौभाग्य से गोप्रेमी सरकार है, जिसके प्रयासों से आज गोमाता का सम्मान बढ़ा है। महंत लालनाथ ने गो संरक्षण के लिए गोरक्षपीठ के योगदान की भी चर्चा की और कहा कि ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी आजीवन गोरक्षा के प्रति समर्पित रहे। गोरक्षपीठ गायों के सम्मान व सेवा का कार्य करती है।

विदेशी नहीं देशी गाय पालें, इनके दूध में होता है स्वर्णभस्म
सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के पूर्व आचार्य प्रो. कमलचंद्र योगी ने कहा कि आज गोमाता पर व्याख्यान देने की आवश्यकता इसलिए हो रही है कि हम अपने देशी गायों को छोड़‌कर जर्सी गायों के पीछे लग गये। देसी गायों के महत्व को भुलाकर उनका अपमान करना दुर्भाग्य की बात की है। देसी गायों के दूध में स्वर्ण भस्म पाया जाता है, जो हमारे शरीर के दोषों का नाशक होता है। गोमाता के गोमय और गोमूत्र में भी विभिन्न रोगों की औषधियां विद्यमान है। गोमाता के घृत से शरीर में कोलेस्ट्राल नहीं बढ़ता। गाय की इसी महत्ता के कारण हमारी संस्कृति में इसे पशु नहीं माता का दर्जा दिया गया।
सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष राजेश मोहन सरकार, संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी ने किया। पूर्व पशुधन प्रसार अधिकारी वरुण कुमार वर्मा वैरागी ने स्वरचित गोमाता की वंदना की प्रस्तुति की। इस अवसर पर रावत मंदिर अयोध्या धाम से आए महंत राममिलन दास, देवीपाटन शक्तिपीठ तुलसीपुर के महंत मिथिलेशनाथ, कालीबाड़ी के महंत रविंद्रदास आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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