पुत्र के आयु-आरोग्यता के लिए जीवत्पुत्रिका व्रत 25 को
गोरखपुर
गोरखपुर। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्र के आयु-आरोग्य लाभ के तथा सर्वांगीण कल्याण के लिए जीवत्पुत्रिका ( जीऊतिया) या जीमूतवाहन के पूजा का विधान निर्दिष्ट किया गया है। आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार यह व्रत 25 सितंबर 2024 बुधवार को मनाया जाएगा। इस व्रत को स्त्रियां अपने पुत्रों के लिए सम्पादित करती है। यह व्रत प्रायः स्त्रियां ही करती है। यदि वह न कर सके तो उसका पति भी इसे कर सकता है। प्रदोष व्यापिनी अष्टमी को स्वीकार करते हुए आचार्यों ने षप्रदओष समय में जीमूतवाहन के पूजन का विधान किया है –
“प्रदोष समये स्त्रीभि : पूज्यो जीमूतवाहन:।
यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो पर दिन को ही ग्राह्म करना चाहिए। फिर भी यदि सप्तमी उपरांत अष्टमी हो तो वह भी ठीक है –
- सप्तम्यामुदिते सूर्ये परतश्चाष्टमी भवेत्।
- तत्र व्रतोत्सवं कुयान्न कुयादपरेहनि।।
अष्टमी तिथि के बाद पारण करनी चाहिए। वर्षकृत्य में कहा गया है – पारणं तु परदिने तिथ्यन्ते कार्यम्।।
इस दिन (25 सितंबर2024, दिन बुधवार को) सूर्योदय 6 बजकर 2 मिनट और आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि का मान प्रातः काल से सायंकाल 4 बजकर 57 मिनट तक,। इस दिन प्रदोष काल में अष्टमी होने से इसी दिन जीवत्पुत्रिका व्रत का निर्धारण हृषीकेश सहित समस्त पंचांगकारो ने निर्धारित किया है। जो शास्त्रोक्त और सर्वथा मान्य है। इस व्रत का पारण 26 सितंबर दिन बृहस्पतिवार को नवमी तिथि में किया जाएगा।
व्रत विधि
जीवत्पुत्रिका व्रत में पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोषकाल में गाय के गोबर से अपने प्रांगण या जहां शुद्ध भूमि हो लिप कर परिष्कृत करे तथा छोटा तालाब भी जमीन खोदकर बना ले। तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दे। शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन को कुशनिर्मित मूर्ति जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली या लाल रुई से उसे अलंकृत कर धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें। मिट्टी तथा गाय के गोबर से चिल्होरिन और सियारिन की मूर्ति बनाकर उसके मस्तकों को लाल सिंदूर से विभूषित कर दे। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उस पर बांस के पत्तों से पूजन करें। तत् पश्चात व्रत माहात्म्य की कथा सुने।अपने पुत्र पौत्रों की लंबी आयु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए महिलाओं को इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए।
व्रत कथा
प्रस्तुत कथा के वक्ता वैशम्पायन ऋषि हैं। बहुत पहले रमणीय कैलाश पर्वत के शिखर पर भगवान शंकर ,माता पार्वती प्रसन्न मुद्रा में बैठे हुए थे। परम दयालु माता गौरी ने महादेव जी से पूछा- प्रभु किस व्रत एवं पूजन से सौभाग्यशाली स्त्रियों के पुत्र जीवित एवं चिरंजीवी बने रहते हैं? कृपया उसके बारे में और उसकी कथा के विषय में बताने का कष्ट करें। भगवान शंकर ने जीवत्पुत्रिका व्रत की विधान तथा महत्व की कथा बताते हुए कहे-
नर्मदा के किनारे एक पाकड़ का पेड़ था उसकी जड़ में एक बड़ा कोटर बना था। उसमें छिपकर एक सियारिन रहती थी। उसी वृक्ष की डाल पर घोंसला बनाकर एक चिह्लोरिन भी रहने लगी। दोनों में मैत्री हो गई।वहां एक नदी भी बहती थी ।संयोग बस उसी नदी के किनारे नगर की सधवा स्त्रियां अपने पुत्रों के आयुष्य और कल्याण की कामना से जीवत्पुत्रिका का व्रत एवं पूजन कर रही थी। उसे देखकर और सब कुछ जानकार चिल्होरिन और सियारिन ने भी व्रत करने का संकल्प किया। व्रत करने के कारण भूख लगना स्वाभाविक है ।चिल्होरिन ने भूख सहन कर रात बिता दी परंतु सियारिन भूख से छटपटाने लगी। वह नदी के किनारे जाकर मांस भक्षण कर ली और फिर अपने कोटर में आ गई। चिल्होरिन सब कुछ देख रही थी। चिल्होरिन ने नगर की सधवा औरतों से अंकुरित मटर लेकर पारण की। सियारिन और चिल्होरिन अधिक सात्विक जीवन व्यतीत करती थी ।कुछ समय के बाद दोनों ने प्रयाग जाकर तीर्थ सेवन किया और उसके बाद दोनों ने शरीर त्याग दिया। दोनों का जन्म एक नगर में हुआ। चिल्होरिन का नाल शीलवती हुआ और सियारिन का नाम कर्पूरावती था। शीलवती के पुत्र होते गए और वे जीवित रहते थे परन्तु कर्पूरावती के पुत्र जन्म के पश्चात दिवंगत हो जाते थे। इस कारण कर्पूरावती शीलवती के पुत्रो से ईर्ष्या करती थी और उसने शीलवती के सातों पुत्रों का सिर कटवा दिया। परन्तु राजा जीमूतवाहन ने उसके बच्चों के सिर और धड़ को जोड़कर उस पर अमृत की वर्षा कर उनको जीवित कर दिए। पश्चात दोनों को अपने पूर्व जन्म का ज्ञान हुआ। उन्हें जीवत्पुत्रिका व्रत के माहात्म्य के बारे में अवगत हुआ।वह तपस्या करने के लिए वन में चली गई। शीलवती अपने पति और पुत्रों के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।–इस कथा को कहने के बाद भगवान शंकर जी पार्वती से कहने लगे कि सौभाग्यशाली स्त्रियां जीमूतवाहन को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को करती है और कथा सुनकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देती है। वह इस संसार में सुख भोगकर भगवान का स्मरण करते हुए गोलोक प्रयाण करती है।