19 देशों से आए 150 विदेशी भक्तों ने किया हरिनाम संकीर्तन, गीता वाटिका में बिखेरा भक्ति का रंग

गोरखपुर

इस्कॉन गोरखपुर द्वारा हरिनाम संकीर्तन का भव्य आयोजन

हरे राम हरे कृष्णा के बोल पर झूमे 19 से देशों से आए हुए भक्त

गीता वाटिका में हरिनाम संकीर्तन में झूमते रहे भक्त 

गोरखपुर, 10 अक्टूबर 2024: इस्कॉन गोरखपुर के तत्त्वाधान में कल शाम गीता वाटिका में एक अद्भुत सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें 19 देशों से आए 150 से अधिक भक्तों ने हरिनाम संकीर्तन में भाग लिया। इस संकीर्तन ने गोरखपुर के आकाश में भक्ति की एक नई धारा प्रवाहित की।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसमें भक्तों ने इस्कॉन के संस्थापकाचार्य कृष्ण कृपामूर्ति ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी और परम पूज्य हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के साथ उनकी ऐतिहासिक बैठक को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर श्रीमान उमेश सिंघानिया जी (ट्रस्टी गीता वाटिका) और अन्य ने अपने स्नेहिल स्वागत के साथ आए हुए भक्तों को फूलों की माला पहनाकर और भाई जी की जीवनी भेंट कर उनका सम्मान किया।

रूस से आए परम पूज्य भक्ति विज्ञान गोस्वामी महाराज ने श्रील प्रभुपाद और भाई जी की ऐतिहासिक मुलाकात के बारे में एक प्रेरणादायक प्रवचन दिया। उन्होंने बताया कि गीता वाटिका वही स्थान है जहां श्रीला प्रभुपाद को श्री भाई जी से श्रीमद्भागवत के प्रकाशन के लिए 1971 में पहला दान प्राप्त हुआ था। वास्तव में, यह कहना गलत नहीं होगा कि गीता वाटिका में श्री चैतन्य महाप्रभु के वैश्विक आंदोलन की नींव रखी गई थी।

कार्यक्रम के बाद, 19 देशों से आए भक्तों ने हरिनाम संकीर्तन करना शुरू किया, जिसका नेतृत्व किया श्री मति व्रजमयी माताजी (ग्रेशिया ज़ॉर्ज) ने, जो पोलैंड से हैं। साथ ही, श्री मान दीनबंधु प्रभु (डैरा शॉवेल) ने मिंस्क से, श्री मति करुणामई माताजी (क्रिस्टोवो क्रोज़ेक) ने बेलारूस से, और श्री मति दिनातारिणी माताजी (डायना क्रोज़ोवा) ने यूक्रेन से भाग लिया।

जब 150 से अधिक विदेशी भक्तों ने हरिनाम संकीर्तन में नृत्य किया तो मानो आकाश से देवता भी पुष्पवर्षा करने लगे, कीर्तन के दिव्य उन्माद से भरे स्वरों से पूरी गीता वाटिका दैदीप्यमान हो थी, साथ ही वहां उपस्थिति हर एक व्यक्ति भक्ति की ऊर्जा से भर गया। सभी भक्त एक साथ नाचते और कूदते हुए पवित्र नाम के ताल पर झूमने लगे। यह दृश्य दर्शाता था कि भक्ति का कोई भौगोलिक या सांस्कृतिक सीमा नहीं होती, और यह सभी को एकसाथ जोड़ती है।

कार्यक्रम के अंत में, सभी भक्तों ने गोरखपुर समुदाय से अपील की कि वे हमारे लिए एक सुंदर मंदिर के निर्माण में सहायता करें। यह मंदिर उनके लिए विशेष होगा, क्योंकि इसको के संस्थापक आचार्य श्रीला प्रभुपाद ने 1971 में यहाँ पूरे एक महीने के लिए निवास किया था। भक्तों ने यह स्पष्ट किया कि यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक भक्ति का केंद्र होगा, जहां लोग भगवान की कृपा प्राप्त कर सकेंगे और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ा सकेंगे।

इस कार्यक्रम ने गोरखपुर में भक्ति और एकता की एक नई लहर पैदा की। भक्तों ने अपने मन की गहराइयों से इस संदेश को फैलाने का संकल्प लिया कि भक्ति और प्रेम के माध्यम से ही विश्व को एकता की ओर ले जाया जा सकता है।

भक्ति की इस अद्भुत यात्रा में भाग लेने वाले सभी भक्तों का एक ही उद्देश्य था—भगवान के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करना और दुनिया भर में शांति और प्रेम का संदेश फैलाना।

इस प्रकार, हरिनाम संकीर्तन ने न केवल गोरखपुर बल्कि पूरे देश में भक्ति का एक नया अध्याय लिखा। 150 से अधिक भक्तों की एकजुटता और उत्साह ने यह सिद्ध कर दिया कि जब हृदय में भक्ति हो, तो भाषा, संस्कृति, और देश की सीमाएँ महज दीवारें बनकर रह जाती हैं।

गोरखपुर में हरिनाम संकीर्तन का यह भव्य आयोजन निश्चित ही भक्तों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बनेगा और यह एक नई प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

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