और राम से हो गए भगवान परशुराम

गोरखपुर

परशुराम जयंती (22 अप्रैल) पर विशेष

भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं भगवान परशुराम

तनिष्क,

गोरखपुर। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। इस तिथि को ‘अक्षय’ तृतीया भी कहा जाता है। इस दिन ‘त्रेता’ युग का आरंभ भी हुआ था। इस तिथि को ‘युगादि’ भी कहा जाता है। महर्षि जमदग्नि के पुत्रेष्टि यज्ञं से प्रसन्न होकर इंद्र के वरदान स्वरूप माता रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने ‘आवेशावतार’ रूप में जन्म लिया। महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार इनके जन्म का नाम ‘राम’ था। लेकिन इन्होंने भगवान शंकर को अपनी घोर तपस्या से प्रसन्न कर उनसे अमोघ अस्त्र ‘परशु’ प्राप्त किया, जिससे इनका नाम ‘राम’ से ‘परशुराम’ हो गया। जन्म से ब्राह्मण होने पर भी इनमें क्षत्रियोचित गुण होने के पीछे एक कथा है।

कन्नौज के राजा गाधि की पुत्री का नाम सत्यवती था। राजा ने उसका विवाह भृगु पुत्र ऋचीक के साथ कर दिया। विवाह के पश्चात भृगु ऋषि ने सत्यवती को आशीर्वाद देते हुए वरदान मांगने को कहा। इस पर सत्यवती ने अपने श्वसुर से अपनी माता के लिए पुत्र की कामना की। इस पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुए कहा कि तुम्हारी माता ऋतु स्नान के पश्चात संतान की कामना से पीपल के वृक्ष का आलिंगन करे और तुम संतान की कामना से गूलर वृक्ष का आलिंगन करना। इसके पश्चात तुम दोनों इन ‘चरुओं’ का अलग-अलग सेवन कर लेना। लेकिन यह सावधानी रखना कि तुम दोनों के पात्र अलग हैं। लेकिन जब यह बात सत्यवती ने अपनी माता को बताई तो उन्होंने छलपूर्वक चरु का अपना पात्र अपनी पुत्री से बदल लिया। इसे योग बल से भृगु ऋषि ने जान लिया। भृगु ने यह बात सत्यवती को बता दी और कहा कि पुत्री पात्र बदल देने से अब तुम्हारी संतान ब्राह्मण होकर भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी। इस पर सत्यवती ने ऋषि से विनती करते हुए कि मुझ पर कृपा करें और आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण जैसा ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रियों जैसा आचरण करे। भृगु ने अपनी पुत्र वधु की विनती स्वीकार कर ली। और इस प्रकार सत्यवती के पुत्र जमदग्नि हुए। लेकिन सत्यवती की कामनानुसार उनके पौत्र परशुराम में क्षत्रियोचित गुण हुए। और सत्यवती की माता के पुत्र विश्वामित्र हुए, जो बाद में अपने तपोबल से क्षत्रिय से ब्राह्मण हुए। परशुराम शस्त्र विद्या के विख्यात आचार्य थे। उनके तीन शिष्य बहुत प्रसिद्ध हुए भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण और महारथी कर्ण। कर्ण ने छलपूर्वक अपनी पहचान छिपाते हुए परशुराम से विद्या पाई। जब परशुराम को उसके इस छल का पता चला तो उन्होंने कर्ण को श्राप देते हुए कहा कि तुमने छल से मेरा शिष्य बन शिक्षा ग्रहण की है। जब तुम्हें मेरी दी हुई विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी। उस समय तुम इसे भूल जा आगे। यह तुम्हारे किसी काम नहीं आएगी। अर्जुन के साथ युद्ध में जब कर्ण के प्राण संकट में थे, तब वे परशुराम के श्रापवश अपनी विद्या का प्रयोग नहीं कर पाए और अर्जुन के हाथों उनका वध हुआ।

 

अश्वनी कुमार

Related Articles