यात्रा से नफरत के अलावा कुछ नहीं फैलेगा : मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी, फैशन के तौर पर इस्तेमाल हो रहा हिजाब

मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी ने की हिन्दू घृणा, बाबा बागेश्वर की यात्रा पर कहा-हिन्दू राष्ट्र बना रहे, हिजाब पर भी बोला

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने शरिया की वकालत करते हुए मुस्लिम महिलाओं के हिजाब को लेकर बयानबाजी की है। मौलाना ने मुस्लिम महिलाओं को फैशन वाले हिजाब को नहीं पहनने की हिदायत दी है। साथ ही बाबा बागेश्वर धाम के द्वारा की जा रही हिन्दू एकता यात्रा पर भी जहर उगला है। मौलाना का कहना है कि भारत हिन्दू राष्ट्र की और बढ़ रहा है।
मीडिया के लिए जारी किए गए बयान के जरिए मौलाना बरेलवी ने अपनी हिन्दू घृणा को दिखाते हुए कहा कि पंडित धीरेंद्र शास्त्री की इस 160 किलोमीटर की यात्रा में बहुत से उतार चढ़ाव आ सकते हैं, डर है कि कहीं दंगा न हो जाए। मुस्लिम कट्टरपंथी सोच वाले बरेलवी ने अपने मन की बात को खुलकर कहा कि बाबा बागेश्वर धाम की इस यात्रा से देश हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है। उनकी इस यात्रा से नफरत के अलावा कुछ नहीं फैलेगा।

मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी

फैशन के तौर पर इस्तेमाल हो रहा हिजाब
शहाबुद्दीन बरेलवी ने मुस्लिम महिलाओं को लेकर कहा कि आजकल बाजार में जिस प्रकार के हिजाब उपलब्ध हैं, वे फैशन से अधिक नहीं हैं। कंपनियां केवल लुभावने लिबासों को बना रही हैं। आजकल तो एक माशाअल्लाह लिखा एक हिजाब भी बाजार में आ गया। ये इस्लामत विरोधी है। बरेलवी का कहना है कि शरिया (मुस्लिम लॉ) में शौहरों को हुस्न-ए सलूक यानि कि अच्छे व्यवहार के साथ रहने का आदेश है। जबकि, इस्लाम में महिलाओं को घरों के अंदर भी पर्दा करने का हुक्म सुनाया गया है।

ईरान जैसी कट्टरपंथी सोच पाले बैठे मौलाना
गौरतलब है कि कट्टरपंथी सोच से सने मौलाना ईरान की ही तरह महिलाओं को हिजाब और पर्दे में रखना चाहते हैं। हाल ही में ईरान में इसी इस्लामी सोच के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए हिजाब के विरोध में एक लड़की ने अपने कपड़े निकाल दिए थे।

स्विट्जरलैंड में बुर्का बैन:

जानिए किस देश ने सबसे पहले लगाया था बुर्का पर प्रतिबंध

हाल ही में स्विट्ज़रलैंड ने बुर्का और अन्य चेहरे को ढकने वाले कपड़ों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है, जो 1 जनवरी 2025 से प्रभावी <p>हाल ही में स्विट्ज़रलैंड ने बुर्का और अन्य चेहरे को ढकने वाले कपड़ों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है, जो 1 जनवरी 2025 से प्रभावी होगा। यह कदम देश में बहुत चर्चा का कारण बना है, क्योंकि स्विट्ज़रलैंड में बुर्का बैन को लेकर समाज में कई तरह की प्रतिक्रियाएं हैं। स्विट्ज़रलैंड सरकार के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य सार्वजनिक सुरक्षा और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना है। सरकार का कहना है कि जब महिलाएं अपना चेहरा ढकती हैं, तो इससे उनकी पहचान छिपाना आसान हो जाता है और अपराधों में वृद्धि हो सकती है। साथ ही, सरकार का यह भी मानना है कि इस प्रतिबंध से महिलाओं को स्वतंत्रता मिलेगी और वे समाज में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए अपना चेहरा दिखाने के लिए प्रोत्साहित होंगी।
जब बात बुर्का बैन की होती है, तो सबसे पहले फ्रांस का नाम सामने आता है। फ्रांस वह देश था जिसने 2010 में सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाया था। यह कानून महिला सशक्तिकरण, समानता, और सार्वजनिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था। फ्रांस सरकार ने तर्क दिया था कि बुर्का पहनना महिलाओं की स्वतंत्रता के खिलाफ है और इससे समाज में एकता बनाए रखने में कठिनाई हो सकती है। हालांकि, इस कानून का विरोध भी हुआ, खासकर धार्मिक और मानवाधिकार संगठनों द्वारा, जिन्होंने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया था।

यूरोप में बुर्का बैन
फ्रांस के बाद कई अन्य यूरोपीय देशों ने भी इसी तरह के कदम उठाए। 2011 में बेल्जियम ने सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाया। इसके बाद, 2015 में हॉलैंड ने भी इसी प्रकार का कानून लागू किया, जिसमें स्कूलों, अस्पतालों, सार्वजनिक परिवहन और सरकारी कार्यालयों जैसे स्थानों पर बुर्का पहनने पर रोक लगाई गई। इन देशों का तर्क था कि चेहरा ढकने से सार्वजनिक सुरक्षा और पहचान से संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
स्विट्ज़रलैंड के अलावा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, और नॉर्वे जैसे देशों में भी कुछ कानूनी प्रणालियों के तहत बुर्का बैन लागू किया गया है। इन देशों का मानना है कि चेहरा ढकने से सुरक्षा संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं और सार्वजनिक पहचान में समस्याएं आ सकती हैं।

मध्य पूर्व और अफ्रीका में बुर्का बैन
यह मामला केवल यूरोप तक सीमित नहीं है बल्कि कई मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों में भी बुर्का और नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया है। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब में महिलाओं के लिए चेहरा ढकना अनिवार्य है, लेकिन इसे लेकर अलग-अलग देशों में नियम और परंपराएं भिन्न हो सकती हैं।

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