बिरसा मुंडा और लचित बरफुकन पर फिल्म के बारे में सोच रहे अभिनेता रणदीप हुड्डा

पणजी

प्रख्यात अभिनेता रणदीप हुड्डा ने कहा कि मुझे बिरसा मुंडा और लचित बरफुकन दोनों में बहुत रुचि है, वीर सावरकर और हिंदुत्व पर भी खुलकर बोले

पणजी। प्रख्यात अभिनेता रणदीप हुड्डा दमदार अभिनय के लिए जाने जाते हैं। हर भूमिका में वह जान डाल देते हैं। फिर चाहे व्यावसायिक फिल्में हों या फिर बॉयोपिक। गोवा में चल रहे 55वें इफ्फी में रणदीप हुड्डा ने शिरकत की। बॉयोपिक वीर सावरकर की पूरी टीम के साथ वह आए और सवालों के खुलकर जवाब भी दिए। वीर सावरकर पर बात की तो हिंदुत्व पर भी।

उन्होंने यह भी बताया कि फिल्मों को लेकर उनके दिल में और क्या है। पणजी के आईनॉक्स में बने मीडिया सेंटर में वह पत्रकारों से रूबरू हुए, मीडिया के इस सवाल कि अनसंग हीरो वीर सावरकर पर आपने फिल्म बनाई तो क्या जनजातीय नायकों जैसे कि बिरसा मुंडा और लचित बरफुकन आदि पर भी फिल्में बनाएंगे ? इस पर रणदीप हुड्डा ने कहा कि मुझे इन दोनों में बहुत रुचि है, मैंने बहुत विचार किया है, इनके बारे में पढ़ाई भी की है। मैं इन पर सोच रहा हूं। क्योंकि इनका बहुत योगदान है। हिस्टोरिकल बॉयोपिक के लिए स्टोरी को बताने का एक नया तरीका अपने दिमाग पर ला पाऊं तभी इस पर प्रयास करूंगा। मेरी इन पर बहुत रुचि है। क्योंकि ऐसे बहुत सारे लोग हैं कि जिन्होंने आजादी दिलाई। वीर सावरकर फिल्म को लेकर मैं इसलिए उत्तेजित था कि हमें तीन-चार लोगों ने आजादी नहीं दिलाई, हजारों लोग थे। पर तीन चार लोग ही पोस्टर ब्वॉय बनकर रह गए। इसे मैं अन्याय मानता हूं। सभी को न्याय मिलना चाहिए। सभी को अपनी जगह भारत के इतिहास और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में मिलनी चाहिए।

वीर सावरकर से बहुत कुछ सीखा
स्वातंत्र्य वीर सावरकर पर बात करते हुए रणदीप हुड्डा ने कहा कि वीर सावरकर को मैंने पढ़ा। वहां गया जहां उन्हें काला पानी की सजा दी गई थी। सावरकर जी के बहुत विचार थे। मूवी में मैंने यही दिखाया है कि परिस्थितयां क्या होती हैं और कोई व्यक्ति इन्हीं परिस्थतियों का परिणाम होता है। हिंदुस्तान को देखने का नजरिया 100 साल पहले ऐसा नहीं था। उस समय देश गुलाम था। मैंने वीर सावरकर जी से बहुत कुछ सीखा। उनकी लिखाई भी बहुत खूबसूरत थी। वाक्य पढ़ने लगे तो जब वह खत्म होता था तो दोबारा से शुरू करना पड़ता था।

कुछ न कुछ तो सही किया होगा
पंडित नेहरू ने कहा था कि हमें आर्मी की जरूरत नहीं है, चीन युद्ध के बाद जब देश बदलने लगा तो उसमें बहुत सारी चीजें हैं। सबसे बड़ी बात यह कि उनके (वीर सावरकर) जाने के बाद आज भी उन पर वाद-विवाद, पॉलिटिक्स हो रही है तो वह कुछ न कुछ तो सही करके गए होंगे। जो आदमी कुछ सही करके जाता है, उसकी ही इस तरह की आलोचना होती है।

क्या है हिंदुत्व
रणदीप हुड्डा कहते हैं कि हिंदुत्व को लेकर वीर सावरकर की सोच थी कि सिंधु नदी से बंगाल की खाड़ी तक जो भी इसे मातृभूमि, पितृभूमि, अध्यात्म या किसी और में इस भारत को मानता है वह हिंदू है। इसमें यह मायने नहीं रखता है कि उसका पंथ क्या है, किस जाति का है और कहां रहता है। यह हिंदू है। इसे अब गलत तरीके से परिभाषित किया जाने लगा। उन्होंने इसे स्वतंत्रता के संदर्भों में देखा था। आज हम इसका प्रयोग सांस्कृतिक पहचान के तौर पर भी कर सकते हैं। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए।

इस पर भी चर्चा
वीर सावरकर फिल्म पर एक सवाल के जवाब में रणदीप हुड्डा ने कहा कि पिक्चर करते करते रियलाइज हुआ कि अहिंसा की राह पर हमेशा चले गांधी जी को गोली लगी और क्रांति की मशाल थामने वाले वीर सावरकर की आमरण अनशन से मौत हुई। उन्होंने बताया कि फिल्म के लिए हमारा क्राइटेरिया था कि कलाकार को किरदार जैसा लगना चाहिए। हमने वीर सावरकर बॉयोपिक बनाते समय इसका ध्यान रखा।

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