बच्चों में टीबी खोजने और त्वरित इलाज के लिए प्रशिक्षित हुए चिकित्सक

गोरखपुर

सरकारी अस्पतालों के प्रशिक्षित चिकित्सा अधिकारी अब ब्लॉक के स्वास्थ्य कर्मियों का करेंगे संवेदीकरण

गोरखपुर, 01 दिसम्बर 2024। बच्चों में टीबी के कारण होने वाले जोखिम और मृत्यु दर को कम करने के लिए जिले के 26 चिकित्सकों को तैयार किया गया है। इनमें से बीस सरकारी क्षेत्र के चिकित्सा अधिकारी हैं जो ब्लॉक स्तरीय स्वास्थ्य कर्मियों का संवेदीकरण करेंगे ताकि अधिक से अधिक बाल टीबी रोगी खोजे जाएं और उन्हें त्वरित उपचार मिल सके। वहीं, छह निजी क्षेत्र के बाल रोग विशेषज्ञों को भी प्रशिक्षित किया गया है जिनकी मदद से अधिकाधिक बाल टीबी रोगी खोजे जाएंगे। यह जानकारी जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी (डीटीओ) डॉ गणेश यादव ने दी।

डीटीओ डॉ यादव ने बताया कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सहयोगी संस्था वर्ल्ड हेल्थ पार्टनर (डब्ल्यूएचपी) की मदद से बच्चों में टीबी निदान, उपचार और प्रबन्धन संबंधी प्रशिक्षण दिया गया। इसका शुभारंभ कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ अजीत कुमार यादव, डीटीओ गोरखपुर और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिशियन के अध्यक्ष डॉ एनके जायसवाल ने किया। सरकारी अस्पताल के चिकित्सा अधिकारियों को मास्टर ट्रेन के तौर पर प्रशिक्षित किया गया है। राज्य स्तर से मास्टर ट्रेनर के तौर पर प्रशिक्षित डीटीओ गोरखपुर और डॉ अजीत कुमार यादव ने प्रशिक्षण दिया है।

प्रशिक्षण के दौरान चिकित्सकों को बताया गया कि बच्चों में टीबी की पहचान कठिन होती है। ऐसे में सीबीनॉट और माइक्रोबायलोजिकल जांच को बढ़ा कर बच्चों में टीबी का पता लगाना है। इसके लिए समुदाय स्तर पर आशा, आंगनबाड़ी, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी, सभी सरकारी अस्पतालों के चिकित्सा अधिकारी और निजी अस्पतालों के चिकित्सक प्रमुख सहयोगी हो सकते हैं। टीबी का लक्षण दिखने पर बच्चों की त्वरित जांच कराई जानी चाहिए। शीघ्र पहचान और सम्पूर्ण इलाज से बच्चों को टीबी से मुक्त कराया जा सकता है। अति कुपोषित बच्चों और टीबी के गैर उपचाराधीन मरीजों के निकट सम्पर्की बच्चों में टीबी होने की आशंका कहीं अधिक होती है।

इस अवसर पर डब्ल्यूएचपी के जिला प्रबंधक संदीप कुमार कौशल, डीपीसी धर्मवीर प्रताप, पीपीएम समन्यवक एएन मिश्रा, मिर्जा आफताब बेग, रामेंद्र श्रीवास्तव, आकाश गोबिंद राव और अनिता सिंह प्रमुख तौर पर मौजूद रहे।

खिलाते हैं बचाव की दवा

पीपीएम समन्यवक अभय नारायण मिश्र ने बताया कि जिन टीबी मरीजों के निकट सम्पर्क में छह वर्ष तक के बच्चे होते हैं, अगर इन बच्चों में टीबी के लक्षण नहीं है तब भी छह माह तक इन बच्चों को टीबी से बचाव की दवा खिलाई जाती है। अगर लक्षण होते हैं तो टीबी की जांच कराते हैं, नहीं तो बिना जांच के ही बचाव की दवा खिलाई जाती है। इस वर्ष 2640 बच्चों को टीबी से बचाव की दवा खिलाई गई है।

लक्षणों के प्रति रहें सतर्क

डीटीओ डॉ गणेश यादव ने बताया कि अगर बच्चे का तेजी से वजन गिर रहा है, दो सप्ताह से अधिक की खांसी है, भूख नहीं लग रही है, रात में पसीने के साथ बुखार हो, सीने में दर्द, बलगम में खून आ रहा हो या सांस फूल रही हो तो टीबी की जांच अवश्य कराई जानी चाहिए।

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