मानव शरीर को सदुपयोग करना चाहिए, सत्यकर्म से भक्ति की प्राप्ति
आस्था
श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्रीकृष्ण की साक्षात शब्दमयी मूर्ति : जगद्गुरु रामानुजाचार्य
मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा सनातन धर्म व हमारी संस्कृति को मजबूती प्रदान करेगी : अवधेश दास
गोरखपुर। श्री गोरखनाथ मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान-यज्ञ के प्रथम दिवस के अवसर पर कथा मंच पर श्री अयोध्या धाम से पधारे जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री राघवाचार्य जी महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्रीकृष्ण की साक्षात शब्दमयी मूर्ति है। हमारा सौभाग्य है कि हम भगवान की इस दिव्य मूर्ति का साक्षात दर्शन व श्रवण कर रहे हैं।
बड़े भक्तमाल श्री अयोध्या धाम से पधारे अवधेश दास जी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म को व्यवस्थित करने के लिए गोरक्षपीठ निरन्तर कार्य करती रही है। आज मंदिर में दिव्य मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा सनातन धर्म व हमारी संस्कृति को मजबूती प्रदान करेगी।
श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कराते हुए कथा व्यास
डॉ॰ श्यामसुन्दर पाराशर जी ने कहा कि गोरक्षपीठाधीश्वर पूज्य योगी जी न केवल गोरक्षपीठ व अवधपीठ में हीं अपितु पूरे उत्तर प्रदेश में प्राण फूकने का कार्य कर रहे हैं। ऐसे यशस्वी मुख्यमंत्री जी के सान्निध्य में कथा का श्रवण कराना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
उन्होंने कहा कि भगवान सच्चिदानंद घन हैं, उनके इस वास्तविक स्वरूप का इस कथा के माध्यम से श्रवण करके अनुभव किया जा सकता है।
भगवान ने हमें यह जो मानव शरीर दिया है उसको चलाने के लिए हमें ब्रह्मा जी ने वेद आदि शास्त्र दिये हैं। जैसे किसी मशीन को चलाने के लिए हमें बुकलेट मिलती है उसी बुकलेट के अनुसार मशीन का संचालन करते हैं तो वह मशीन अच्छी चलती है, उसी प्रकार से हमारे जीवन जीने के लिए शास्त्र रूपी बुकलेट हमें मिली है, हमें इनके अनुसार अपना जीवन यापन करना चाहिए।
कथा व्यास ने कहा कि मरने का भय उसी को होता है जो आगे की यात्रा के लिए तैयारी नहीं किया रहता है, सन्त लोग भगवान के कीर्तन मनन के द्वारा अपने आगे की तैयारी किये रहते हैं इसलिए उन्हें मरने का डर नहीं
उन्होंने गोकर्ण जी का उपदेश वर्णन करते हुए कहा कि जीवन जीने की कला यहीं है कि इस दुनिया को किराये की धर्मशाला समझ कर जो रहता है उसे कभी किसी चीज से कष्ट नहीं मिलता। यह शरीर या संसार एक न एक दिन छोड़ना पड़ेगा, इसलिए शरीर या संसार के किसी व्यक्ति या वस्तु से आसक्ति न रखो तभी इसको छोड़ने में कष्ट नहीं होगा। सन्त जन संसार में रहते हैं पर उससे चिपकते नहीं है। सूखे नारियल की तरह संसार में रहते हुए भी अपने को सबसे अलग रखते हैं। हम जिन-जिन से चिपकेंगे उनके टूटने पर हम भी टूट जाएंगे। इसलिए साथ में रहो लेकिन पत्नी, पुत्र, धन, संपत्ति आदि पर आसक्ति न रखो, यहीं जीवन जीने का तरीका है।
उन्होंने कहा कि गीता में भगवान कहते हैं कि जो भी कर्म कर रहे हो उसे मुझे अर्पण करके करोगे तो तुम्हारा वह सभी कर्म मेरी भक्ति हो जाएगा।
कथा का समापन आरती और प्रसाद वितरण से हुआ। संचालन डॉ॰ श्रीभगवान सिंह ने किया।
कथा में प्रमुख रूप से बड़ा भक्तमाल अयोध्या से स्वामी अवधेश कुमारदास जी महाराज, अयोध्या से डॉ स्वामी राघवाचार्य जी महाराज, गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ जी, देवीपाटन से महंत मिथलेशनाथ जी महाराज, वाराणसी से संतोषदास सतुआबाबा, कटक उड़ीसा से महंत शिवनाथ, बलिया से महंत सुजीतदास जी, स्वामी अनुपानंद जी महाराज, स्वामी अर्जुनानंद जी, महंत पंचानन पुरी, महंत रामदास, नवनिर्वाचित महापौर गोरखपुर डॉक्टर मंगलेश श्रीवास्तव, पुष्पदंत जैन, रामजनम सिंह तथा यजमान विष्णु अजीतसरिया, ओम जालान, अतुल सराफ, चंद्र प्रकाश अग्रवाल, तन्मय मोदी, राजेश मोहन सरकार, शंभू शाह, श्रवण जालान, प्रदीप जोशी आदि उपस्थित रहे।