भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का संगम है श्रीमद्भागवत महापुराण : कथा व्यास
श्रद्धा
श्री गोरखनाथ मंदिर में मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा अवसर पर श्री लक्ष्मी नारायण एवं श्री भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का दूसरा दिन
प्रातः से 18 पुराणों का पाठ एवम् वैदिक मंत्रों का पूजन विद्वान आचार्य गण द्वारा संपन्न हुआ। तो सायं काल में चारो द्वारों, वेदियों, का पूजन संपन्न हुआ।
ज्ञान-यज्ञ में आज प्रातः वाहिद देवी का गांव का खुद सो पचास पूजन हुआ ब्रह्म, विष्णु , महेश, इंद्र, सूर्य वरुण आदि षोडस स्तंभों का पूजन। ऋग्वेद द्वार, यजुर्वेद द्वार, सामवेद द्वार तथा अथर्ववेद द्वार का पूजन, वैदिक ब्राह्मण पूजन हुआ। इसके उपरांत नैऋत्य कोण पर वास्तु देवी, वायव्य कोण पर क्षेत्रपाल, ईशान कोण पर प्रधान वेदी एवम् ध्वज तथा आग्नेय कोण पर चौषठ योगिनियों का पूजन वैदिक मंत्रों के बीच हुआ तथा आरती के साथ सुबह का पूजन कार्य संपन्न हुआ।
सायं काल में चारो द्वारों, वेदियों, का पूजन संपन्न हुआ।
प्रातः से 18 पुराणों का पाठ एवम् वैदिक मंत्रों का पूजन विद्वान आचार्य गण द्वारा संपन्न हुआ।
गोरखपुर। श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान-यज्ञ के द्वितीय दिवस के अवसर कथा व्यास डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने कहा कि
श्रीमद्भागवत महापुराण भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी का संगम है। भागवत के पहले श्लोक में ध्येय,दूसरे श्लोक में ज्ञेय और तीसरे श्लोक में पेय का वर्णन है।जब तक भागवत रस हमने नहीं चखा तब तक यह विषय रस हमको आकर्षित करती है। भागवत रस चखने के बाद विषय रस फीके लगने लगते है।
कथा व्यास ने कहा कि वेदों की परोक्षवादिता हमें धीरे धीरे भगवत भक्ति में लगती है। हमारे ऋषियों ने वेदाध्ययन के लिए जो सभी अधिकार नहीं दिया उसका भाव कोई घृणा का नहीं था अपितु वेदों के समझ से है। यदि वेदों का तात्पर्य समझे बिना व्यक्ति वेद के मंत्र को समझने का प्रयास करेगा तो अर्थ का अनर्थ कर लेगा।
श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे श्लोक में निष्कपट धर्म का वर्णन किया गया है। वेदों में धर्म का लक्षण बताया गया है कि सत्य का आचरण करना, माता पिता व गुरु की सेवा करें। यही हमारा धर्म है।यदि हम माता पिता गुरु कि सेवा स्वार्थ के लिए कार्य करता है तो यह कपट धर्म है।
कथा व्यास ने कहा कि भगवान से प्रेम करना जीव का धर्म है किंतु निष्कपट प्रेम वहीं है जिसमें भगवान से भगवान को ही मांगा जाता है संसार की चीजों को नहीं।यदि किसी कामना से भगवान से प्रेम करते है तो वह कपट प्रीति है।
कथा व्यास ने कहा कि जो बाहर से काटे वो मच्छर है किंतु जो भीतर से काटे वह मत्सर है । दूसरे के आगे बढ़ने से दुखी होना ही मत्सर है, ऐसे मत्सर से रहित व्यक्ति ही श्रीमदभागवत का अधिकारी है।
श्रोता के हृदय में भगवान की कथा सुनने की इच्छा होते ही भगवान उसके हृदय में अवरुद्ध हो जाते है। जब तक जन्म जन्मांतर के पुण्य नही जगेंगे तब तक भागवत कथा सुनने की इच्छा नहीं होती। यदि भाववतकथा सुनने की प्यास आपको नही है तो समझिये आपका अंतःकरण निर्मल नहीं है,वह निर्मल होगा आपके सत्कर्मों से।
कथा व्यास ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण सभी के हृदय में झांकते रहते है, यदि जिसके हृदय में काम ,क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि नही है, उसके हृदय में निवास करने लगते है।
कथा व्यास ने कहा कि गोपियों का प्रेम, प्रेम की ध्वजा है। उनके प्रेम में किसी प्रकार का कपट भाव नहीं रहता। भगवान कृष्ण का नाम टेढ़ा, काम टेढ़ा और स्वरूप भी टेढ़ा है, इसीलिए इनको बांके कहते है। जो सबको अपनी तरफ खींचे वही कृष्ण है।
श्रीमद्भागवत वेद रूपी कल्प वृक्ष का रसीला फल है। यह फल परम मीठा है क्योंकि इसमें शुकदेव रूपी शुक अर्थात तोते का मुख लागा है। ऐसे रस के खजाने वाले फल को बार बार पीयो।
कथा व्यास ने कहा कि भगवान के रस का पान करके यदि कोई तृप्त हो जाता है, तो समझलो कि अभी उसको ठीक से भगवान के रस का चस्का नहीं लगा है। भगवान के कथा मृत की प्यास उसी को लगती है जो रसिक होता है इसीलिए व्यास जी रसिक और भावुक जन को इस रस का पान करने के लिए बुलाते है।
कथा व्यास ने कहा कि तत्व एक ही है उसे ज्ञानी ब्रह्म कहते हैं उसी को योगी जन परमात्मा कहते हैं और उसी तत्व को भक्त जन भगवान कहते हैं। भगवान वो है जो सगुण साकार है, भक्तों को उसी सगुण रूप में आनंद आता है। ठाकुर जी राम कृष्ण आदि अनेक रूपों सुलभ है, जिसको जो अच्छा लगे उनका भजन करें। केवल सनातन धर्म ही ऐसा है जिसमें ईश्वर के अनेक रूप है किंतु जिनके पास विकल्प नहीं है वो अपना धर्म मनवाने के लिए तलवार निकलते है।
कथा व्यास ने कहा कि भगवान के गुण गण संतो के हृदय को खींच लेते हैं। यदि हमारा हृदय मालिन होता है तो भगवान के गुणों की परिधि में हम नहीं आपाते जैसे चुंबक किसी कीचड़ या आवरण से घिरे लोहे को नहीं खींचता, वैसे हमारा मालिन हृदय भगवान की भक्ति में नही लग पाता।
कथा का समापन आरती और प्रसाद वितरण से हुआ। संचालन डॉ॰ श्रीभगवान सिंह ने किया।
कथा में योगी कमलनाथ, कटक से योगी शिवनाथ, वाराणसी से सन्तोषदास सतुआबाबा, डॉ॰ प्रदीप राव एवम यजमान अंकुर जालान तथा अजय सिंह, अवधेश सिंह, विकास जालान, संतोष अग्रवाल, लाला बाबू आदि उपस्थिति रहे।