स्नान-दान का पर्व गंगा दशहरा 30 मई को

आस्था

आचार्य पंडित शरदचन्द्र मिश्र,
गंगा दशहरा 30 मई 2023, दिन मंगलवार को है। इस दिन पूर्वाह्न में दशमी तिथि होने से गंगा दशहरा के लिए यह तिथि मान्य है। इस दिन सूर्योदय 5 बजकर 16 मिनट पर और ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि का मान दिन में 10 बजकर 7 मिनट तक, पश्चात एकादशी तिथि, हस्त नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और अगले दिन 3 बजकर 43 मिनट (31 मई को 3–43 ए-एम) तक, सिद्धि योग सायंकाल 7 बजकर 6 मिनट पश्चात व्यतिपात योग और सौम्य नामक औदायिक योग है।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा जी का अवतरण हस्त नक्षत्र में हुआ था। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख माना जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान, दान एवं उपवास का विशेष फल माना जाता है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि हस्त नक्षत्र से संयुक्त ज्येष्ठ शुक्ल दशमी दस प्रकार के पापों को हरने के कारण दशहरा कहलातीं है।

ये है देश पाप 

तीन कायिक: 1-बिना अनुमति के दुसरे की वस्तु लेना, 2- हिंसा, 3- परस्त्रीगमन है।

चार वाचिक : 1- कटु बोलना, 2- झूठ बोलना, 3- पीछे से बुराई करना या चुगली करना, 4- निष्प्रयोजन बातें करना है।

तीन मानसिक पाप : 1- दूसरे की वस्तु को अन्यायपूर्ण ढंग से लेने का विचार करना, 2- दूसरे के अनिष्ट का चिंतन करना, 3- नास्तिक बुद्धि रखना है।

स्कन्द पुराण में कहा गया है कि “ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुध हस्तयो:। व्यतिपाते गरानन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ। दशयोगे नर: स्नानात्वा सर्व पापै: प्रमुच्यते।। अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को बुधवार हो, हस्त नक्षत्र हो, व्यतिपात योग हो, आनंद योग हो तथा चन्द्रमा कन्या नक्षत्र में हो, तो ऐसा योग अपूर्व महाफलदायक होता है। व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।
इस दिन साधक को गंगा जी अथवा समीप की पवित्र नदी अथवा सरोवर में स्नान करना चाहिए। तदुपरांत गंगा जी का पूजन करना चाहिए तथा अंत में निम्न मंत्र का यथासंभव जप करें –” ऊं शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः”– संभव हो सके तो उक्त मंत्र में नमः के स्थान पर स्वाहा लगाकर हवन भी करें। तत्पश्चात- ऊं नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं हिला हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा– इस मंत्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित करने वाले भागीरथ जी तथा हिमालय का भी पूजन करना चाहिए। अंत में दस दस मुट्ठी अनाज एवं अन्य वस्तु दस ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। सत्तू का भी दान किया जाता है। गंगा दशहरा की कथा सुनकर ही व्रत रखना चाहिए। यदि गंगा स्नान न कर पाते हैं तो घर पर ही गंगा जल को मिलाकर स्नान सम्पन्न करें और यदि सम्भव कुछ दान अवश्य करें।

 

व्रत कथा : अयोध्या के राजा महाराजा सगर अपने असमंजस सहित साठ हजार पुत्रों की उद्दंडता एवं दुष्ट प्रकृति से दुखी थे। फलत: उन्होंने असमंजस और अपने साठ पुत्रों के स्थान पर अपने पौत्र और असमंजस के पुत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया। जब महाराजा सगर अश्वमेध यज्ञ किया तब इंद्र ने अश्वमेध के घोड़े को पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। कपिल मुनि उस समय ध्यान मग्न थे ।उन्हें इस बात की भनक ही नहीं लगी कि महाराजा सगर के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा उनके आश्रम में बना हुआ है। सगर के साठ हजार पुत्रों को इस बात का पता चला कि कपिल मुनि के आश्रम में यज्ञ का घोड़ा बंधा हुआ है तो वे कपिल को मारने के लिए गए। कपिल मुनि ने अपने तेज से सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। अंशुमान को जब इस बात का पता लगा तो उसने कपिल मुनि से प्रार्थना की। अंशुमान की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कपिल मुनि उन्हें यज्ञ का घोड़ा वापस दे दिया और कहा कि गंगाजल के स्पर्श से सगर के साठ हजार पुत्रों की मुक्ति हो सकती है।
महाराजा सगर का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ। कुछ समय पश्चात सगर ने अंशुमान को राजा बना दिया, किंतु अंशुमान अपने पितरों की मुक्ति के लिए चिंतित थे। इसलिए समय तक राज्य करने के बाद वह अपने पुत्र दिलीप को गद्दी सौंपकर कर पृथ्वी पर गंगा लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिए वन में चले गए। तपस्या करते उनके प्राण निकल गए परन्तु पृथ्वी पर गंगा का अवतरण नहीं हो पाया। कुछ समय बाद महाराजा दिलीप अपने पुत्र भगीरथ को राजगद्दी सौंपकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा जी को लाने के लिए तपस्या करने के लिए चले। उन्होंने बहुत प्रयास किया किन्तु पृथ्वी पर गंगा का अवतरण नहीं हो सका। महाराजा दिलीप के पश्चात राजा बने भगीरथ ने भी अपने पिता की भांति स्वर्ग से गंगा लाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की। अंत में तीन पीढ़ियों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने भागीरथ को दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। भगीरथ ने पृथ्वी पर गंगा के अवतरण की मांग की। उस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि -मैं गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर भेज सकता हूं किंतु पृथ्वी पर उनके वेग को कौन संभालेगा। इसके लिए भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। ब्रह्मा जी के परामर्श के अनुसार भगीरथ ने एक पैर पर खड़ा कर भगवान शिव की तपस्या आरंभ की। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव गंगा जी के वेग को संभालने के लिए तैयार हो गए। गंगा जी का अवतरण हुआ तो भगवान शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में रोक लिया और उनमें से एक जटा को छोड़ दिया। इस प्रकार गंगा देवी जी चलीं। आगे-आगे महाराजा भगीरथ जी और उनके पीछे-पीछे गंगा जी चलने लगीं। बाद में जह्नुऋषि का आश्रम पड़ा तो गंगा जी ने उनके कमण्डलु आदि को बहा दिया। यह देखकर ऋषि क्रुद्ध हो गए और उन्होंने गंगा जी को पी लिया। जब भगीरथ ने पीछे मुड़ कर देखा कि गंगा जी उनके पीछे नही आ रही हैं। स्थिति को जानकर उन्होंने ऋषि से प्रार्थना की। ऋषि ने गंगा को अपनी पुत्री बनाकर अपने दाहिने कान से निकाल दिया।यही कारण है कि गंगा को जाह्नवी के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची और भागीरथ के पूर्वजों को मुक्ति मिली। भगीरथ के प्रयासों गंगा जी का अवतरण हुआ था, इसी कारण गंगा जी को भागीरथी भी कहा जाता है।

गंगा जल की महिमा : गंगा जल की महिमा का वर्णन समस्त पुराणों में वर्णित है। भारतीय परम्परा के अनुसार प्रत्येक सनातन परिवार में गंगा जल रखा जाता है। इस भगवान विष्णु का साकार स्वरूप माना गया है, क्योंकि गंगा जी उत्पत्ति भगवान विष्णु के चरणों से हुई है। इसे मोक्षदायिनी कहा गया है। केवल सनातन धर्मी ही नहीं विदेशियों ने भी गंगा जल की मुक्ति स्वर से प्रशंसा की है। पूर्व के इतिहास को छोड़ भी दें तो भी मुग़ल काल और तुर्कों के समय तथा युरोप से आए विदेशीयों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की है।मुगल बादशाह अकबर जब दक्षिण भारत की यात्रा पर रहता था तो भी उस समय सोरों से गंगा जल मंगवाकर ले जाता था और इसका सेवन करता था।इसकी गुणवत्ता का वर्णन टैविनियर नामक विदेशी यात्री ने अपने संस्मरण में किया है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि गंगा जल में किटाणुओं को नष्ट करने की महान क्षमता है। इसमें सल्फर की मात्रा प्रचुर मात्रा में होता है।यहीं कारण है कि इसके जल से बहुत समय रखने पर भी दुर्गंध नहीं निकलता है।यह वर्षो तक अपने मूल रुप में सुरक्षित रहता है। रोगियों को गंगा जल का सेवन कराया जाता है और ऐसा विश्वास किया जाता है कि गंगा जल के सेवन से वे लोग से मुक्त हो जाते हैं और देखा भी गया है नित्य गंगा में स्नान करने और गंगा जल के निरंतर सेवन से बहुत से असाध्य रोगों से रोगी मुक्त हो जाते हैं। यह जीवनदायिनी नदी है।

Related Articles